आयुर्वेदिक काढ़े में पीपली, जावित्री, शहद, नीम, केशर सहित कई ऐसे मसालों का उपयोग किया जाता है, जो शरीर को सर्दी, जुकाम, बुखार आदि में लाभदायक हो। इधर अणसर गृह में भगवान (Lord jagannath) को उलटा सुलाया गया है। अब यह दरवाजा 2 जुलाई को नेत्र उत्सव के दिन खुलेंगे और भगवान के स्वस्थ होने के बाद 4 जुलाई को श्री जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा निकाली जाएगी। सेक्टर-6 जगन्नाथ मंदिर के पंडित तुषार महापात्र ने बताया कि 15 दिनों तक भगवान की गुप्त पूजा होती है। इसमें काढ़े लेकर पूजन तक की सेवा सब इस तरह की जाती है कि उसे कोई देख न पाए।
देवस्नान पूर्णिमा के बाद न तो मंदिरों के घंटे बज रहे हैं, और न ही गर्भगृह के द्वार खुले हैं। पुजारी कहते हैं कि भगवान जन्नाथ (Lord jagannath) विष्णु का स्वरूप हैं। मानव स्वरूप में वे जगन्नाथ के रूप में धरती पर आए, इसलिए वे बीमार पड़ते हैं और उन्हें उपचार की भी जरूरत पड़ती है। देवस्नान पूर्णिमा के बाद बीमार पड़े भगवान का उपचार किया जा रहा है। पंडितों की मानें तो इन सभी परंपराओं के पीछे संदेश भी छिपा हुआ है। गर्मी के बाद होने वाली बारिश में ज्यादा भीगने से लोग जल्दी बीमार पड़ते हैं। इसलिए बारिश से हमें बचना चाहिए।