हर दिन 700 टन ऑक्सीजन उत्पादन की है क्षमता
भिलाई इस्पात संयंत्र में दो जगह ऑक्सीजन का उत्पादन किया जा रहा है। पहला भिलाई इस्पात संयंत्र का खुद का प्लांट ऑक्सीजन प्लांट-2 (ओपी-2) है और दूसरा प्रैक्सेयर ऑक्सीजन तैयार करता है। दोनों मिलकर करीब हर दिन 700 टन ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकते हैं। प्रैक्सेयर ऑक्सीजन का उत्पादन कर भिलाई इस्पात संयंत्र की जरूरत की आपूर्ति करती है। यह अनुबंध के मुताबिक ही हो रहा है। वहीं बीएसपी जो उत्पादन करती है, उसे वह दूसरे को ऑर्डर पर आपूर्ति करती है।
मध्यप्रदेश ने किया 300 टन की मांग
मध्यप्रदेश ने भिलाई इस्पात संयंत्र से 300 टन ऑक्सीजन की मांग किया था। अनुबंध 31 मार्च 2021 को खत्म हो रहा था। जिसे बढ़ाकर अब 1 जून 2021 तक कर दिया गया है। इससे कोरोना महामारी में उनको बड़ी मदद मिलेगी। इतना ही नहीं जरूरत के मुताबिक क्वांटिटी को बढ़ाया भी जा सकता है।
छत्तीसगढ़ के सारे अस्पतालों को कर सकता है आपूर्ति
भिलाई इस्पात संयंत्र और प्रैक्सेयर जितनी ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकते हैं। उसका 20 फीसदी भी राज्य सरकार को मिल जाए तो छत्तीसगढ़ के सारे अस्पताल को पर्याप्त मात्रा में सिलेंडर मिल सकता है। अब तक राज्य सरकार ने इस दिशा में पहल नहीं किया है। वहीं मध्यप्रदेश ने इस मामले में कोरोना काल के आरंभ से ही विकल्प तलाश रखा था। अब वहां होने वाली ऑक्सीजन की किल्लत तो दूर हो रही है। वहीं छत्तीसगढ़ में इस ओर अभी ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
60 टन ऑक्सीजन की आपूर्ति
मध्यप्रदेश ने भिलाई इस्पात संयंत्र से अनुबंध के मुताबिक 60 टन ऑक्सीजन की पहली खेप अप्रैल 2021 के दूसरे सप्ताह में भेजी गई। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठे हुई है। जहां एक और दूसरे प्रदेश भिलाई स्टील प्लांट से अपने लोगों के लिए ऑक्सीजन खरीद रहें है, वही छत्तीसगढ़ के लोग ऑक्सीजन की कमी से लगातार जान गवां रहे हैं।
दूसरी लहर में मौतों ने डराया
छत्तीसगढ़ में कोरोना की दूसरी लहर में मौत सारे पुराने रिकार्ड को तोड़ रही है। हालात यह है कि सरकारी आकड़े और मौत की हकीकत एक दूसरे से कोसों दूर है। ऐसे में ऑक्सीजन का जहां उत्पादन हो रहा है वहां के लोग उसके लिए तड़पे यह हालात न बने इसके लिए ठोस पहल की जरूरत है।
जून तक बढ़ाया है करार
भिलाई इस्पात संयंत्र के जनसंपर्क विभाग के मुताबिक मध्यप्रदेश की एक एजेंसी से पिछले साल 300 टन का करार किया था, जिसमें से अगस्त, सितंबर 2020 को कुछ लिए, पूरा नहीं ले पाए। अब उस करार को 1 जून 2021 तक बढ़ाया गया है।
मौत को नियंत्रित करने में मिलेगी मदद
कोरोना संक्रमितों को इस वक्त समय पर इलाज नहीं मिल रहा है। जिसकी वजह से मौत के आंकड़ों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। कोरोना संक्रमितों की तकलीफ बढ़ती है तो सबसे पहले जरूर ऑक्सीजन की होती है। इसकी कमी से कई मौत हो रही है। इस वक्त अगर कोविड अस्पतालों में बेड की जानकारी मांगी जाए तो जवाब खाली नहीं है का मिलेगा। यह हालात सरकारी और निजी दोनों ही जगह पर देखने को मिल रहा है। ऐसे में करीब 1000 ऑक्सीजन युक्त बेड तुरंत तैयार किया जा सकता है। इसके लिए महज जिला प्रशासन को पहल करने की जरूरत है। भिलाई इस्पात संयंत्र के पास एक से बड़कर एक एक्सपर्ट और तैयार स्पेयर पाट्स हैं। बीएसपी के उच्च प्रबंधन का इशारा होते ही वे मेडिकल गैस पाइप लाइन की जाल बिछा सकते हैं। इस काम में पूर्व कर्मियों का भी सहयोग लिया जा सकता है। इससे कम से कम ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौत पर ब्रेक लगेगा।
सब कुछ रखा हुआ है प्लांट में
बीएसपी के ऑक्सीजन प्लांट से रिटायर हुए कर्मचारी बताते हैं की अस्पताल में सेंट्रलाइज्ड ऑक्सीजन सप्लाई सिस्टम के लिए उपयोग में आने वाले पाइप लाइन और मैनीफोल्ड सिस्टम भी बंद पड़े ऑक्सीजन प्लांट-वन और ऑक्सीजन प्लांट-टू में मौजूद है। संयंत्र के अंदर ऑक्सीजन लाइन पर काम करने वाले मेन पॉवर भी उपलब्ध है। इस तरह अगर जिला प्रशासन और बीएसपी प्रबंधन मिलकर काम करें तो किसी स्कूल या बंद अस्पताल में बहुत कम समय में ऑक्सीजन युक्त एक हजार बिस्तर की व्यवस्था की जा सकती है।
क्या होता है मैनीफोल्ड सिस्टम
ऑक्सीजन को स्टोर करने के लिए जहां बड़ा टैंक नहीं होता है। वहां पर 5 से 10 अलग-अलग सिलेंडर को एक पाइप लाइन से जोड़ दिया जाता है। जिससे यह ऑक्सीजन पाइप लाइन के जानिए होते हुए हर बिस्तर तक पहुंच जाती है। इस तरह के सिस्टम में अस्पताल को ऑक्सीजन स्टोरेज के लिए किसी तरीके का शासकीय प्रमाण पत्र लेने की आवश्यकता नहीं होती है।