हिंदी, अंग्रेजी और गुजराती में किया संपादन
जानकारों के मुताबिक राष्ट्रपिता ने संपादन १९१७ से ही शुरु कर दिया था। १९१९ के समय उन्होंने अंग्रेजी में छपने वाला साप्ताहिक अख्बार ‘यंग इंडियाÓ बतौर संपादक निकाला। उसी तरह ‘नवजीवन गुजराती और हिंदीÓ में के माध्यम से भी उन्होंने देशवासियों में आजादी की अलख जगाई। नवजीवन १९१९ से १९४८ तक चला। देश की सामाजिक स्थिति को संतुलित करने के लिए गांधी जी ने १९३३ में ‘हरिजनÓ अंग्रेजी में और ‘हरिजन बंधुÓ गुजराती में शुरू किया।
जानकारों के मुताबिक राष्ट्रपिता ने संपादन १९१७ से ही शुरु कर दिया था। १९१९ के समय उन्होंने अंग्रेजी में छपने वाला साप्ताहिक अख्बार ‘यंग इंडियाÓ बतौर संपादक निकाला। उसी तरह ‘नवजीवन गुजराती और हिंदीÓ में के माध्यम से भी उन्होंने देशवासियों में आजादी की अलख जगाई। नवजीवन १९१९ से १९४८ तक चला। देश की सामाजिक स्थिति को संतुलित करने के लिए गांधी जी ने १९३३ में ‘हरिजनÓ अंग्रेजी में और ‘हरिजन बंधुÓ गुजराती में शुरू किया।
पाठक करते थे लेखों की प्रतिक्षा
आजादी की लड़ाई के दौरान हो रहे आंदोलनों, सभाओं की भाषा और भाषण के लिए पाठक हफ्तेभर इंतजार करते थे। नवजीवन हो यंग इंडिया या फिर हरिजन में लेख के उपरांत लिखा जाता था ‘विस्तृत लेख के लिए पाठक गांधीजी के लेख की प्रतिक्षा करेंÓ। जानकारों की मानें तो लेख छपते ही उसे पढऩे वाला हर नागरिक जोश और जुनून से भर जाता। उनकी शैली नम्र होती, लेकिन शब्दों का चयन है कि उत्साह भर दे।
आजादी की लड़ाई के दौरान हो रहे आंदोलनों, सभाओं की भाषा और भाषण के लिए पाठक हफ्तेभर इंतजार करते थे। नवजीवन हो यंग इंडिया या फिर हरिजन में लेख के उपरांत लिखा जाता था ‘विस्तृत लेख के लिए पाठक गांधीजी के लेख की प्रतिक्षा करेंÓ। जानकारों की मानें तो लेख छपते ही उसे पढऩे वाला हर नागरिक जोश और जुनून से भर जाता। उनकी शैली नम्र होती, लेकिन शब्दों का चयन है कि उत्साह भर दे।
इन मुद्दों पर निकले स्पेशल अंक
गांधी जी के संपादन में तीनों ही साप्ताहिक अख्बारों में विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर विशेष अंक भी निकाले गए। इस दौरान खिलाफत आंदोलन, जलियावाला बाग, हिंदु-मुस्लिम सद्भावना आंदोलन, छुआछुत जैसे विषय प्रमुख थे। जानकारों का कहना है कि इन स्पेशल इशुज के लिए पाठक कई दिन पहले से इंतजार करते थे।
गांधी जी के संपादन में तीनों ही साप्ताहिक अख्बारों में विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर विशेष अंक भी निकाले गए। इस दौरान खिलाफत आंदोलन, जलियावाला बाग, हिंदु-मुस्लिम सद्भावना आंदोलन, छुआछुत जैसे विषय प्रमुख थे। जानकारों का कहना है कि इन स्पेशल इशुज के लिए पाठक कई दिन पहले से इंतजार करते थे।
इस तरह भिलाई पहुंची प्रतियां
गांधी जी द्वारा संपादित अख्बारों की यह प्रतियां देश में चुनिंदा लोगों के पास ही महफूज है। इसके तहत अहमदाबाद स्थित नवजीवन ट्रस्ट और जलगांव स्थित गांधी रिचर्स फाउंडेशन के बाद भिलाई के आशीष कुमार दास के पास हिंदी, अगं्रेजी और गुजराती में छपि प्रतियां मौजूद है। आशीष ने बताया कि इन्हें कलेक्ट करने में तीस साल का समय लगा है। कई तरह के नेशनल, इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस के जरिए इनके बारे में जानकारी जुटाई है। यह क्रम आगे भी जारी है।
गांधी जी द्वारा संपादित अख्बारों की यह प्रतियां देश में चुनिंदा लोगों के पास ही महफूज है। इसके तहत अहमदाबाद स्थित नवजीवन ट्रस्ट और जलगांव स्थित गांधी रिचर्स फाउंडेशन के बाद भिलाई के आशीष कुमार दास के पास हिंदी, अगं्रेजी और गुजराती में छपि प्रतियां मौजूद है। आशीष ने बताया कि इन्हें कलेक्ट करने में तीस साल का समय लगा है। कई तरह के नेशनल, इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस के जरिए इनके बारे में जानकारी जुटाई है। यह क्रम आगे भी जारी है।