भिलाई

आज भी भिलाई में बातें करते हैं महात्मा गांधी, कभी उदास होते हैं तो कभी देते हैं सबको को हौसला…

आजादी की लड़ाई के दौरान हो रहे आंदोलनों, सभाओं की भाषा और भाषण के लिए पाठक हफ्तेभर इंतजार करते थे।

भिलाईApr 21, 2018 / 06:29 pm

Mohammed Javed

mahatma gandhi

भिलाई . ‘लाहौर की महासभा कई तरह से ‘अपूर्वÓ कही जा सकती है। उसके अनेक और भांतिभांति के रंगों का वर्णन करने के लिए शांति चाहिए, धीरज चाहिए और आक्रोश चाहिए। इसलिए इस सप्ताह तो मौन रहना ही ठीक समझता हूं। क्योंकि यह पत्र लिखते समय तीनों का अभाव है। इस बीच महासभा का जो मुख्य प्रस्तवा है, जिसके लिए देश तड़प रहा था उस प्रस्ताव की भाषा और भाषण इस अंक में दिए देता हूं। यह शब्द गुरुवार ९ जनवरी १९३० को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के संपादन में छपे साप्ताहिक हिंदी अख्बार ‘हिंदी नवजीवनÓ के २१वीं के अंक के है। जगह थी अहमदाबाद और अख्बार के संपादक मोहनदास करमचंद गांधी। आपको जानकर आश्चर्य होगा गांधी जी द्वारा संपादित अख्बार ‘हिंदी नवजीवन, अंग्रेजी यंग इंडिया और हरिजनÓ की लगभग सौ साल पुरानी ६० से ज्यादा प्रतियां भिलाई में रहने वाले बीएसपी कर्मी व बिबलियोग्राफर आशीष कुमार दास के पास मौजूद हैं।
हिंदी, अंग्रेजी और गुजराती में किया संपादन
जानकारों के मुताबिक राष्ट्रपिता ने संपादन १९१७ से ही शुरु कर दिया था। १९१९ के समय उन्होंने अंग्रेजी में छपने वाला साप्ताहिक अख्बार ‘यंग इंडियाÓ बतौर संपादक निकाला। उसी तरह ‘नवजीवन गुजराती और हिंदीÓ में के माध्यम से भी उन्होंने देशवासियों में आजादी की अलख जगाई। नवजीवन १९१९ से १९४८ तक चला। देश की सामाजिक स्थिति को संतुलित करने के लिए गांधी जी ने १९३३ में ‘हरिजनÓ अंग्रेजी में और ‘हरिजन बंधुÓ गुजराती में शुरू किया।
पाठक करते थे लेखों की प्रतिक्षा
आजादी की लड़ाई के दौरान हो रहे आंदोलनों, सभाओं की भाषा और भाषण के लिए पाठक हफ्तेभर इंतजार करते थे। नवजीवन हो यंग इंडिया या फिर हरिजन में लेख के उपरांत लिखा जाता था ‘विस्तृत लेख के लिए पाठक गांधीजी के लेख की प्रतिक्षा करेंÓ। जानकारों की मानें तो लेख छपते ही उसे पढऩे वाला हर नागरिक जोश और जुनून से भर जाता। उनकी शैली नम्र होती, लेकिन शब्दों का चयन है कि उत्साह भर दे।
इन मुद्दों पर निकले स्पेशल अंक
गांधी जी के संपादन में तीनों ही साप्ताहिक अख्बारों में विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर विशेष अंक भी निकाले गए। इस दौरान खिलाफत आंदोलन, जलियावाला बाग, हिंदु-मुस्लिम सद्भावना आंदोलन, छुआछुत जैसे विषय प्रमुख थे। जानकारों का कहना है कि इन स्पेशल इशुज के लिए पाठक कई दिन पहले से इंतजार करते थे।
इस तरह भिलाई पहुंची प्रतियां
गांधी जी द्वारा संपादित अख्बारों की यह प्रतियां देश में चुनिंदा लोगों के पास ही महफूज है। इसके तहत अहमदाबाद स्थित नवजीवन ट्रस्ट और जलगांव स्थित गांधी रिचर्स फाउंडेशन के बाद भिलाई के आशीष कुमार दास के पास हिंदी, अगं्रेजी और गुजराती में छपि प्रतियां मौजूद है। आशीष ने बताया कि इन्हें कलेक्ट करने में तीस साल का समय लगा है। कई तरह के नेशनल, इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस के जरिए इनके बारे में जानकारी जुटाई है। यह क्रम आगे भी जारी है।
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