बरसों पुराना उनका कॉन्फिडेंस आज भी उनके मिजाज में झलकता है। वे 87 वर्ष की है, पर आज भी उनके कॅरियर और गल्र्स एजुकेशन पर कोई बात करें तो उनकी आंखों में चमक और कांपती आवाज में नारी सशक्तिकरण जरूर नजर आता है। प्रमिला न केवल बीएसपी की पहली लेडी इंजीनियर है, बल्कि वह अविभाजित मध्यप्रदेश के जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में 1953 बैच में प्रवेश लेने वाली पहली छात्रा भी है। इससे पहले इंजीनियरिंग कॉलेज तक पहुंचने बेटियों ने कभी हिम्मत नहीं दिखाई थी।उन्होंने टेलीकम्यूनिकेश ब्रांच में उन्होंने अपनी डिग्री पूरी की। उनका मानना है कि महिलाओं को आगे बढ़ाने शिक्षा से बढ़कर दूसरा कोई माध्यम नहीं, क्योंकि शिक्षा ही तरक्की के रास्ते खोलती हैं। प्रमिला बीएसपी के 4 मीलियन टन एक्पॉशन के वक्त ब्लॉस्ट फर्नेस 7 में बेल लेस टॉप सिस्टम की इंचार्ज भी थी।
वे बताती हैं कि उनके पिता ने रूडकी आईआईटी से अपनी डिग्री ली थी और वे मध्यप्रदेश शासन में पीडब्लूडी डिपार्टमेंट में चीफ इंजीनियर थे। वे काफी खुली सोच के थे, इसलिए उन दोनों बहनों में से एक को डॉक्टर और एक को इंजीनियर बनाया। वे बताती हैं कि माता-पिता ने केवल एक बात सिखाई थी, कि अपनी हर ख्वाहिशों और सपनों को पूरा करने खूब ऊंची उड़ान भरो, लेकिन घर के सम्मान को हमेशा बनाए रखना। बस यही बात मन में कुछ इस तरह बैठ गई कि कॉलेज हो या प्लांट हर जगह मिली चुनौतियों का सामना आसानी से करने की हिम्मत आ गई। वे बताती हैं कि वे इंडियन इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट में बेस्ट इंजीनियर चुनी गई और भारत के राष्ट्रपति से भी उन्हें प्रेसीडेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया गया।
प्रमिला बताती हैं कि पुरुषों के संग इकलौती महिला इंजीनियिर को देख कई लोग कहते भी थे कि यह लड़कियों के बस की बात नहीं, पर उन्हें इन बातों से और हौसला मिलता गया। उन दिनों वे रायपुर से भिलाई बस से ही आना-जाना करती थी। उन दिनों महिलाओं के लिए कोई प्राइवेट रूम की व्यवस्था भी नहीं थी। उसके बाद भी वे पुरुषों के बीच अपनी जगह बना ही लेती थी। वे बताती हैं कि उनकी ज्वाइनिंग के कुछ महीने बाद दो और महिला इंजीनियर आई और फिर धीरे-धीरे बीएसपी में महिलाओं की संख्या बढ़ती चली गई। इसी बीच उनका विवाह बीएसपी में ही उनके साथ इंजीनियर रहे सी बालचंद्र नायर से हो गई। उनके परिवार में दो बेटे और एक बेटी हैं और वे सभी अमेरिका में बस गए हैं।
बीएसपी से बतौर चीफ इंजीनियर के पद से 1992 में रिटायर्ड होने के बाद स्कूल से लेकर कॉलेज के बच्चों को पढ़ाती हैं। खासकर स्पोकन इंग्लिश और इंजीनियरिंग की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने उनके पास काफी युवा आते हैं। जिनमें से कई देश-विदेश में जॉब कर रहे हैं तो कई आईआईटी में प्रवेश ले चुके हैं। उन्होंने एक बेटी को शिक्षित करने गोद भी लिया है। आज वह माइक्रो बायोलॉजी से बीएससी कर रही हैं और उसका चयन भी आगे की पढ़ाई के लिए ऑस्ट्रेलिया की एक यूनिवर्सिटी के लिए भी हुआ है।