नहीं है दोनों हाथ
युवक ने बताया कि चिकित्सक ने देखा कि विपिन कुमार तिवारी के दोनों हाथ नहीं है। इसके बाद भी कह दिया कि प्रमाण पत्र नहीं दिया जाएगा। वह हैरान रह गया कि दोनों हाथ जिसके नहीं है, वह बिना किसी सपोर्ट के ट्रेन में चढ़ कैसे सकता है। अगर सामान है तो उसे लेकर कैसे जाएगा। बदले में चिकित्सक ने उसे नई गाइड लाइन भी नहीं बताई, जिसमें लिखा हो कि दोनों हाथ के साथ-साथ और क्या-क्या कमी रहने पर यह प्रमाण पत्र दिया जाएगा। मना करने के पीछे कोई नियम है या चिकित्सक का अपना तर्क, यह बिना जाने ही मायूस होकर वह लौट गया। वहां कार्यरत अस्पताल के कर्मियों ने जरूर कहा कि दूसरे चिकित्सक को अपनी परेशानी बता देना वह बना देंगे।
हादसे में गया था दोनों हाथ
शंकर नगर, सुपेला में रहने वाले विपिन के दोनों हाथ नहीं है, एक हादसे में ईश्वर ने उससे यह बेशकीमती तोहफा छीन लिया। इसके बाद भी उसने हार नहीं मानी और दोनों हाथ के सहारे लिखने का प्रयास शुरू किया। स्कूल में दूसरे बच्चों से वह पढ़ाई में कतई कमजोर नहीं था। अब उसने स्नातक की शिक्षा पूरी कर ली है।
पिता करते हैं सुरक्षा गार्ड का काम
विपिना के पिता सुरक्षा गार्ड का काम करते हैं। वे लोग शंकर नगर में किराए के मकान पर करीब दो दशक से रह रहे हैं। पतंग पकडऩे की जल्दबाजी में बचपन में करंट लगने से उसका हाथ चला गया था। बचपन से ही वह परिवार की आर्थिक तौर पर कमजोर स्थिति को देखते हुए बड़ा हुआ है।
मां-बाप के सपनों को करना चाहता है पूरा
विपिन चाहता है कि वह अपने पैरों पर खड़े होकर माता-पिता को दुनिया का वह सारा सुख दे जो सामान्य बच्चे देते हैं। अब वह चाहता है कि पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी करे और परिवार के सारे दुख दूर करे। यह आसान नहीं है, वह उसे जिला अस्पताल जाने के बाद नजर आने लगा है। जो सक्षम लोग हैं वे दूसरों की तकलीफ को समझना नहीं चाहते।
शासन की योजना से उम्मीद
दोनों हाथ नहीं है लेकिन इसके बाद भी विपिन आगे पढऩा चाहता है। बी कॉम की शिक्षा पूरी करने के बाद वह पढ़ाई करते रहना चाहता है। शासन की योजना से उसे उम्मीद है कि आगे पढ़ाई में कारगर साबित होगी। इसके लिए उसे रियायत वाले रेलवे पास की जरूरत होगी। जिसमें जिला अस्पताल के चिकित्सक आड़े आ रहे हैं।
दिव्यांगों को लेकर भी नरम नहीं हैं चिकित्सक
जिला अस्पताल, दुर्ग के चिकित्सक दिव्यांगों को लेकर नरम नहीं है। यह बात बार-बार साबित होती रही है। दिव्यांगों के परिवारके व्यवहार के नाम पर कभी दिव्यांग को परेशान किया जाता है। इसी तरह कभी नए-नए नियम बताकर जरूरतमंद को प्रमाण पत्र देने से इंकार कर दिया जाता है। यह सबकुछ इस वजह से आसानी से हो रहा है क्योंकि पीडि़तों के सामने शिकायत करने कोई जगह नहीं बचती। अगर वे जिला अस्पताल के बड़े अधिकारी के पास जाते हैं तो वे भी अपने चिकित्सकों का पक्ष लेने में जुट जाते हैं। असल में पहले दिव्यांग की स्थिति को देखने की जरूरत है।
गाइड लाइन के मुताबिक दिया जाता है प्रमाण पत्र
डॉक्टर आरके नायक, हड्डी रोग विशेषज्ञ, जिला अस्पताल, दुर्ग ने बताया कि रेलवे टिकट में रियायत के लिए उनको प्रमाण पत्र दिया जाता है, जो सहारा लेकर चलते हों। इस गाइड लाइन के मुताबिक ही किसी को दिया जाता है और मना किया जाता है।