पैरेंटिंग में बच्चों की कॅरियर और मौजूदा समस्याओं का समाधान करते हुए उन्हें सकारात्मक रुख और संस्कारों से आगे बढऩे की सीख दी गई। इस दौरान विद्यालय के प्राचार्य प्रकाश यादव, शिक्षा समिति अध्यक्ष केशव अग्रवाल, सचिव सुनील जैन, कोषाध्यक्ष गोपाल खेमका, कैमिकल इंजीनियर श्रीराम अग्रवाल मौजूद रहे। छात्रों को चिरंजीव जैन ने बताया कि विषय का चयन आपकी पसंद के आधार पर होता है जिसमें आप बेहतर परफॉर्म कर सको और एक्सल कर सको। आप अपना लक्ष्य किस विषय के साथ पूरा कर सकते हैं और कॅरियर की सफलता का रास्ता क्या हो, यह आप तय कीजिए।
यह नैचुरल है। बड़े बेटे को छोटे के आते ही जिम्मेदार बना दिया जाता है। हम उससे कहते हैं देखो उसको छूना नहीं, उसे रुलाना नहीं, छोटे भाई का ध्यान रखना। इस तरह वह जवाबदेही समझने लगता है। वहीं छोटे बेटे को बड़े भाई के रूप में एक संरक्षक मिल जाता है।
आमतौर पर देखें तो वर्किंग मदर के बच्चे जवाबदेह होते हैं क्योंकि उन्हें हर वो काम खुद करना पड़ता है, जिसके लिए अन्य बच्चे मां पर निर्भर रहते हैं। बच्चों को दिनभर पीछे घूमने वाले माता-पिता से अधिक उनको समझने वाले माता-पिता की जरूरत होती है। आपको सिर्फ उनके लिए क्वालिटी टाइम निकालना है। घर लौटने पर कुछ देर बच्चों के साथ बैठें, अपनी दिनभर की बातें उनसे कहें उनकी भी सुनें। प्रयास करें कि रात का खाना सभी एकसाथ खाएं।
आप जरूर बन सकते हैं, लड़कियां भी यूपीएससी के जरिए भारतीय पुलिस सेवा में आ रही हैं। अभी आप दसवीं में हैं तो पहले उसमें अच्छी तरह सफल हों ताकि मनपसंद विषय और विद्यालय चुन सकें। बारहवीं में अच्छा प्रदर्शन करें। प्रयास करें कि आइआइटी सिलेक्ट हों। वहां आपको पढ़ाई के दौरान ही चार साल तैयारी के लिए भी मिल जाएंगे। चयनित अधिकांश परीक्षार्थी यही रास्ता अपनाते हैं। आप आइपीएस बनने के लिए ऐसा ही रोडमैप तैयार करें। रही बात पिताजी की तो आप सफल होते जाइए, उनका मन भी बदल जाएगा। इसमें स्कूल और पैरेंटिंग टुडे भी सहयोग करेंगे।
डर से कांपती छात्रा सवाल खत्म होते ही रो पड़ती है? उसे पैरेंटिंग टीम ने हौसला दिया। तब उसने बताया कि मुझे डांस अच्छा लगता है, लेकिन मना करते हैं। लड़कियों को चाहे कपड़े हों या पढ़ाई, हर बात में रोकाटाकी क्यों होती है? यह इतना हो गया है कि अब मैं बोलने में भी घबराने लगी हूं। उसे माइक पर बोलने के लिए प्रेरित किया गया, आत्मविश्वास जगाने की टिप्स दी गई। कुछ ही मिनटों में वह सामान्य हो गई और माइक पर बोलकर एक अच्छे लक्ष्य के साथ आगे बढऩे का भरोसा दिलाया। छात्रा को यह भी समझाया कि पैरेंट्स कई बार समाज और उसकी घटनाओं को देखते हुए भी बच्चों को टोकते हैं। तरीका अच्छा या बुरा हो सकता है, लेकिन इसमें भी बच्चों की भलाई छुपी होती है।
परीक्षा के लिए सालभर ठीक तैयारी नहीं करने से अक्सर ऐसा होता है। बच्चे सोचते हैैं कि जो सालभर में नहीं पढ़ पाया, उसको दो-चार दिन में पढ़ लिया जाए। फिर परीक्षा के एक दिन पहले वह 24 घंटे में सब समेट लेना चाहता है। कई बार नींद भी नहीं लेता और डाइट भी प्रॉपर नहीं होती। इससे परीक्षा हॉल में चक्कर आना, भूल जाना, घबराहट होना, उल्टियां होने जैसे लक्षण उभर आते हैं। सभी छात्र ध्यान रखें..अब भी जो कुछ दिन बचें हैं उसके लिए ईमानदारी से टाइम टेबल बनाकर पढ़ाई करें। इसमें नींद पूरी करने, कुछ फिजिकल एक्टिविटी और डाइट का भी ध्यान रखें। रात में जागकर पढऩे की बजाय सुबह 4 से 7 बजे के बीच पढ़ें। भारतीय संस्कृति में यह ब्रह्ममुहूर्त का समय होता है। विज्ञान भी मानता है कि इस समय दिमाग अपनी सौ फीसदी क्षमता से काम करता है।
जो भी विषय होते हैं वो अगली कक्षाओं के लिए बेस तैयार करते हैं। आपने अगर 9वीं में उस टॉपिक को ठीक से नहीं पढ़ा तो वो हिस्सा मिसिंग हो जाएगा। जो अब आपको पढऩे में दिक्कत कर रहा है। इसलिए हमेशा बेसिक ठीक रखना चाहिए। अभी के लिए इतना करें कि आपको मालूम है कौन सा टॉपिक कमजोर है और क्यों है? बस, यही ठीक किया जाए। इसमें टीचर की मदद लें, उनको बताएंगे तो वे आपकी तैयारी कराएंगे। इस बात का ध्यान रखें कि जो टॉपिक आपको आता है उसका कम से कम तीन बार रिवीजन कर लें। पिछले वर्षों के पेपर सॉल्व करें, उसे भी टीचर से चैक कराएं। इससे लिखने की आदत होगी, आपको गलतियां मालूम चल जाएंगी।
पहला तो अभी परीक्षा का समय है, इसलिए पहला फोकस उस पर किया जाए। वैसे भी 13वीं के सिलेबस के हिसाब से तैयारी होने पर नीट की 50 फीसदी तैयारी हो जाती है। नीट की बात करें तो फिजिक्स के स्कोर से बहुत हद तक सक्सैस तय होती है, इसलिए तैैयारी जरूरी है। टीचर की हेल्प लेकर और नीट के लिए 9वीं से 12वीं तक के टॉपिक्स तैयार कर लिए जाएं। जैसा कि बताया कि उसका बायो सब्जेक्ट अच्छा है तो उसपर कमांड बनाए रखे। नीट का 50फीसदी बायो ही है। पिछले सालों के पेपर सॉल्व कराएं, उसमें चार विकल्प में एक सही होता है, लेकिन बाकी तीन विकल्प भी जवाब के करीब होते हैं और उनके बारे में पढऩे से आपके ३ और प्रश्नों के जवाब तैयार हो जाएंगे।
पैरेंटिंग टुडे वर्कशाप से आप भी जुड सकते हैं अगर आपके मन में भी कोई सवाल है तो 9826081141 पर संपर्क कर सकते हैं। एक्सपर्ट आपके सवाल का जबाव देंगे। किसी बच्चे को मैथ्स अच्छा नहीं लगता किसी को साइंस, कोई सिविक नहीं पढऩा चाहता। यह एक तरफ तो उनकी रुचि की बात है। रुचि जगाए बिना जबरदस्ती करने से वह विषय से और दूर होता जाता है। दसवीं तक मैथ्स पढऩा होती है, बाद में उसे छोड़ा जा सकता है। मैथ्स को याद नहीं कर सकते, उसे प्रैक्टिस से ठीक किया जा सकता है। प्रैक्टिस कराएं और जहां दिक्कत हो उसे बार-बार समझाएं। डांट-फटकार या झिड़कने से दिक्कत बढ़ सकती है। दसवीं के बाद उसका साइकोमैट्रिक टेस्ट कराकर उसके विषय और रुझान को जान सकते हैं।