खराब हो गई थी मशीन
जिला अस्पताल, दुर्ग में पहले भी प्लेटलेट सपरेटर मशीन थी, लेकिन वह करीब 8 माह से खराब है। वह मशीन करीब 15 साल पुरानी हो चुकी थी। जिसकी वजह से उसे कंडम ही कहा जा रहा था। उसके बंद होने से विभाग के कर्मचारी सकते में आ गए थे, उनको आशंका था कि बिना इस मशीन के डेंगू मरीजों को समय पर इलाज कैसे होगा।
प्लेटलेट के लिए निजी ब्लड बैंक में करना पड़ता अधिक भुगतान
डेंगू व मलेरिया के मरीज को प्लेटलेट्स की जरूरत पड़ी तो उसे प्राइवेट ब्लड बैंक जाना पड़ता, इस तरह से उससे वहां हजारों रुपए वसूला जाता। आर्थिक तौर पर कमजोर परिवार के लिए तब मुश्किल बढ़ जाती है। अब शासन ने नई मशीन भेज दिया है, जिसका लाभ मिलने लगेगा।
52 की हुई थी मौत
जिला में 2018 के दौरान डेंगू ने कहर ढाया था, तब करीब 52 लोगों की मौत हुई थी। जिसमें से विभाग 11 की पुष्टि करता है और 26 को संभावित केस मानता है। इस तरह से महज 37 मामले को ही डेंगू से जुड़ा मानता है। वह दिन लोग भूले नहीं है। जिला अस्पताल में जिस तरह से मरीजों के लिए व्यवस्था उस वक्त की गई थी, वह सभी को मालूम है।
यहां पनपते हैं डेंगू के टाइगर मच्छर
डेंगू फैलाने वाले एडीस इजप्टाइ मच्छर रुके हुए साफ पानी में पनपते हैं। घरों या कूलर, टंकी, पानी पीने के बर्तन, फ्रिज के ट्रे, फूलदान, टायर जैसे में यह मच्छर आसानी से पनपते हैं।
नई मशीन का मिलेगा लाभ
डॉक्टर पवन अग्रवाल, प्रभारी, ब्लड बैंक, जिला अस्पताल, दुर्ग ने बताया कि डेंगू के मरीजों को नए मशीन का लाभ मिलेगा। अभी प्लेटलेट सपरेटर मशीन पहुंची है। सोमवार को इसे कंपनी इंस्टॉलेशन करेगी। पुरानी मशीन खराब हो गई, जिसकी वजह से सिविल सर्जन की पहल पर यह मशीन मिली है।
तब चढ़ाना पड़ता है प्लेटलेट्स
डॉक्टर जेपी मेश्राम, चीफ मेडिकल हेल्थ ऑफिसर, दुर्ग ने बताया कि डेंगू होने पर शरीर में प्लेटलेट्स की कमी हो जाती है। डेंगू के खतरनाक स्टेज में जब प्लेटलेट्स 10 हजार से नीचे जाने लगता है तब प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत होती है।