आपत्ति के बाद बैकफुट पर विवि हेमचंद विवि ने अपनी गलती सुधारने के लिए अब कॉलेजों (शोध के्रदों) को सूचना जारी कर कहा है कि विवि अध्यादेश क्रमांक-९ की कंडिका ९ अनुसार ऐसे शोध निर्देशक, जिन्हें विवि द्वारा पूर्व में संबंधित विषय में शोध निदेशक मान्य किया गया है, लेकिन महाविद्यालयों में उनकी नियुक्ति यदि अन्य विषय के लिए की गई है तो वे शोध निदेशक के रूप में कभी मान्य नहीं किए जाएंगे। विवि अपनी गलती सुधारने के लिए बैकफुट पर आ गया है। शोधके्रदों से कहा है कि आपके केंद्र में ऐसे शोध निदेशक हैं तो उनकी सूची विवि को सौंपे। जानकारी छिपाने पर पूरी जिम्मेदारी शोधके्रद की होगी।
रविवि ने नहीं माना, हेमचंद ने गाइड बनाया रविवि के प्रोफेसरों से मिली जानकारी के मुताबिक दुर्ग क्षेत्र की एक प्रोफेसर को पहले भी बॉटनी की प्रोफेसर को माइक्रोबायोलॉजी का गाइड बनाने से इनकार किया जा चुका है। यानि जिस प्रोफेसर गाइड के तौर पर रविवि के द्वारा अमान्य किया गया, उसे हेमचंद विवि ने पहले ही गाइड का हकदार बना दिया। विवि की ओर से जारी निदेशकों की सूची में ऐसे कई नाम भी नजर आ रहे हैं, जिन्हें निर्धारित अनुभव के बिना ही गाइड जैसी अहम जिम्मेदारी सौंप दी गई है।
पहले साइंस कॉलेज में आ चुका है मामला साइंस कॉलेज का एक विशेष मामला है, जिसमें प्रोफेसर की नियुक्ति हिन्दी विभाग में थी, लेकिन पीएचडी राजनीति शास्त्र में। इसी के आधार पर उन्हें प्रमोशन का लाभ मिला। बाद में जब शासन ने फाइल खोली तो कार्रवाई हुई। इस मामले में उक्त प्रोफेसर से बकाया की रिवाकरी की नौबत तक आई। पूर्व में माइक्रोबायोलॉजी और बायोटेक्नोलोजी के प्रोफेसर न होने की स्थिति में संबंधित विषयों को क्लब किया जाता था, लेकिन बाद में यूजीसी ने यह नियम बदल दिया।
हेमचंद यादव विवि के कुलसचिव डॉ. सीएल देवांगन ने बताया कि उच्च शिक्षा विभाग की बैठक में निर्णय हुआ है कि कॉलेज में जिस विषय में नियुक्ति होगी, उसी में गाइड बन सकेंगे। यूजीसी ने ही नियम बदल दिया है। हमने शोधकेंद्रों से ऐसे शोध निदेशकों की सूची मांगी है। इन्हें अमान्य करेंगे। पहले जिनके नाम सूची में शामिल हैं, उन्हें हटाया जाएगा।