गुरूदेव की एक अनुपम रचना काबुलीवाला, इस कहानी की उम्र अब १२७ साल हो गई है। इस कहानी के सृजन के समय अत्यंत गरीब देश अफगानिस्तान का काफी हिस्सा भारत की बिखटिश सरकार के अधीन हुआ करता था। उस समय की राजधानी कलकत्ता गरीब अफगानियों के व्यापार हेतु बहुत बड़ा आर्कषक का केंन्द्र था। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल होने के कारण कलकत्ता के लोगों ने उन्हें नाम दिया काबुलीवाला।
देश, धर्म, भाषा के भेद को दरकिनार कर दूसरे देश से आये एक काबुलीवाला के साथ एक उच्च वर्ग की बंगाली परिवार की छोटी सी पांच वर्ष की कन्या से स्नेह को केंन्द्र में रखकर गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जो विश्वबंधुत्व का संदेश दिया है वो आज के विश्व की सामाजिक, राजनीतिक-अस्थिरता की पृष्ठभूमि में अत्यंत प्रासंगिक है।