अधिवक्ता सिद्धार्थ तिवारी ने बताया कि बिल्डर ने (Anand bihar phase two)आनंद बिहार फेज टू पोटिया निवासी गुरुदीप सिंह भाटिया के खिलाफ के खिलाफ दो अलग अलग परिवाद प्रस्तुत किया था। जिसमें उसने कहा था कि भाटिया से इकरारनामा किया गया है। जिसके हिसाब से संधारण शुल्क 600 रुपए प्रतिमाह देना है। राशि जमा नहीं करने के कारण यह राशि बढ़कर 21600 रुपए हो चुका है। साथ ही बिजली बिल भी जमा नहीं किया जा रहा है।
गुरुदीप सिंह ने भाटिया ने प्राधिकरण को बताया कि उसने बिल्डर से15.25 लाख में फ्लैट खरीदने 31 अगस्त 2013 को एग्रीमेंट किया था। जिसके आधार पर 30 माह बाद यानी 2016 में फ्लैट उसे मिल जाना था, लेकिन बिल्डर ने निर्धारित तिथि को मकान सौंपा ही नहीं। कॉलोनी में आधारभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं कराई। कब्जा नहीं सौंपने पर उसने जिला उपभोक्ता फोरम में परिवाद प्रस्तुत किया था। फैसला उसके पक्ष में आया। राज्य उपभोक्ता आयोग ने भी फैसले को यथावत रखा है।
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अधिवक्ता अनुराग ठाकर ने बताया कि रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवेलपमेंट) एक्ट 2016 को भारतीय संसद ने पास किया था। रेरा का मकसद ग्राहकों के हितों की रक्षा करना और रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश को बढ़ाना है। राज्य सभा ने रेरा को 10 मार्च और लोकसभा ने 15 मार्च 2016 को पास किया। यह देश भर में 1 मई 2016 को इसे लागू किया गया। उन्होंने बताया कि खरीददार इस बात की शिकायत कर रहे थे कि रियल एस्टेट की लेनदेन एकतरफा और ज्यादातर डिवेलपर्स के हक में है। रेरा और सरकार के मॉडल कोड का मकसद मुख्य बाजार में विक्रेता और संपत्ति के खरीददार के बीच न्यायसंगत और सही लेनदेन तय करना है। रेरा को भारतीय रियल एस्टेट इंडस्ट्री का पहला रेगुलेटर कहा जा रहा है। रियल एस्टेट एक्ट के तहत यह अनिवार्य किया गया कि सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अपने रेगुलेटर और नियमों का गठन करेंगे, जिसके मुताबिक कामकाज होगा।