हिमानी ने बताया कि 2017 में उसे अचानक कमजोरी लगने के बाद तेज बुखार और सांस लेने में काफी दिक्कतें आ रही थी। गले में सूजन यानी गठान होने लगी। जिसका टेस्ट कराने पर टीबी रोग का पॉजिटिव बताया गया। दिनोंदिन भूख नहीं लगने से वजन भी कम होने लगा। डॉक्टरों की सलाह के बाद एम्स रायपुर रेफर किया गया जहां 15 दिनों तक भर्ती रखा गया। जांच के बाद एम्स में टीबी की दवाई लेनी शुरु हुई। दवाई लेने से सेहत में सुधार होने लगा तब अस्पताल से डिस्चार्ज के बाद शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुर्सीपार से 9 महीने तक दवा का पूरा कोर्स किया। टीबी को हराने में शहर के ही स्वास्थ्य कार्यकर्ता दुष्यंत शर्मा ने उसका साथ दिया। इलाज के इन 9 महीनों के दौरान हिमानी 12 वीं कक्षा में थ्री, बोर्ड परीक्षा की भी चिंता सता रही थी। लेकिन समय-समय पर परामर्श के साथ शिक्षकों व परिजनों का भी भरपूर सहयोग मिलता रहा। खाली पेट 8 गोलियों की खुराक लेने से चक्कर व उल्टियां होती थी। इससे पढ़ाई में ध्यान नहीं दे सकती थी। बावजूद इसके 12 वीं बोर्ड की परीक्षा व टीबी रोग से जीतने में कामयाब रही।
हिमानी बताती है कि टीबी से पूर्ण रूप से स्वस्थ्य होने के बाद नवंबर-2018 में सामाजिक संस्था रीच की ओर से हुई टीबी कार्यशाला में शामिल हुई और टीबी चंैपियन बनी। अब वह लोगों को टीबी से बचाने (एनटीईपी) के स्टॉफ के साथ मिलकर टीबी मरीजों की काउंसलिंग का कार्य कर रही। टीबी की दवा की पूरी खुराक नियमित लेने के लिए मरीजों को प्रेरित कर रही हूं।