एमबीबीएस के बाद जब मधुलिका ने पीजी एंट्रेस क्वालिफाई करके ऑर्थोपेडिक सर्जरी चुना तब साथी पुरुष डॉक्टर कहते थे कि ये तुम्हारे बस की बात नहीं। तुम्हें स्त्री रोग या फिर शिशु रोग विशेषज्ञ बनना चाहिए। क्या हड्डियों और मांस पेशियों के साथ जिंदगी भर जूझती रहोगी। मधुलिका ने न सिर्फ इस चैलेंज को स्वीकार किया बल्कि छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में महिला डॉक्टरों के लिए एक नया रास्ता भी खोला। कई क्रिटकल सर्जरी करने के बाद मुधलिका फिलहाल आदिवासी बाहुल्य जशपुर जिला अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रही है।
डॉ. मधुलिका कहती है कि मैंने जीवन में कभी हारना नहीं सीखा था पर मेडिकल एंट्रेस के पहले अटेम्प्ट में असफल हो गई। टॉपर स्टूडेंट होने के नाते ये असफलता इतनी खली कि दो महीने तक डिप्रेशन में रही। किसी तरह पिता और परिवार के लोगों ने समझाया तब जाकर ड्रॉप इयर में सचदेवा कॉलेज भिलाई के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर के मार्गदर्शन में दोबारा तैयारी शुरू की। आज जब खुद को इस मुकाम पर खड़ा हुआ देखती हूं तो सोचती हूं कि जीवन में हार का स्वाद भी जरूरी है, क्योंकि हार के बाद ही जीतने का जुनून बड़ जाता है। जब पुरुष प्रधान समाज किसी महिला को चुनौती देता है तो उसकी सफलता शोर मचाने के लिए काफी होती है।