एक हिंदू भाई दुर्ग में बाबा अब्दुल शाह रहमान काबुली रहमतल्ला अलैह का शाही उर्स पूरी शान-ओ-शौकत के साथ मनाता है।
भिलाई. अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने के मसले को 25 साल पूरे हो गए हैं। देश में भले ही आज भी इसको लेकर विवाद की स्थिति है, लेकिन यदि आप इस तनाव को दरकिनार कर कौमी एकता की मिसाल देखना चाहते हैं हो तो कहीं न जाए। अपना दुर्ग शहर ही आपको भाईचारे का सही मतलब समझा देगा।
आप यह जानकर खुशी से भर जाएंगे कि कैसे एक हिंदू भाई दुर्ग में बाबा अब्दुल शाह रहमान काबुली रहमतल्ला अलैह का शाही उर्स पूरी शान-ओ-शौकत के साथ मनाता है। मुस्लिम समुदाय के उर्स का नेतृत्व एक हिंदूभाई करता है। भाईचारे की यह मिसाल दुर्ग के व्यावसायी प्रकाश देशलहरा पिछले ३५ साल से पेश करते आ रहे हैं।
२० साल से वे ही उर्स पाक समिति के अध्यक्ष हैं। मुस्लिम भाईयों ने ही उन्हें हर बार निर्विरोध यह पद सौंपा है। बाबा का उर्स कराने की जिम्मेदारी लेने वालों में जितने मुस्लमान है, उतने ही हिंदू भी। कौमी एकता की ऐसी मिसाल देने वालों ने ही अपने शहरों को सामुदायिक विवादों की परछाई से भी महफूज रखा है। इस उर्स का नाम ही कौमी एकता उत्सव।
दरगाह का मुख्य गेट आपसी भाईचारे का सबसे बड़ा प्रमाण पेश करता है। गेट पर लिखी चंद लाइनें ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करनाÓ सब कुछ बयां कर देती हैं। २००४ में गेट के निर्माण के समय यह लाइनें लिखवाई गई थी, जो आज भी मिट नहीं पाई हैं।
यह गेट लंबे समय से आपसी भाईचारे का गवाह है। हिंदू भाईयों ने इस गेट की तामीर के वक्त ही इसे एकता द्वार का नाम दे दिया था। मुस्लिम भाई भी इस पहल में शामिल हुए थे। गेट तो अब पुराना हो चला है, लेकिन सम्प्रादायिक सद्भाव का यह सिलसिला अब भी जारी है।
बाबा के नाम पर रखा गया चिटनविस मार्ग कौमी एकता का वह मंजर भी हमारे लिए यादगार है जब हमने दुर्ग के चिटनविस मार्ग का नाम बदलने में कोई विवाद नहीं किया। पटेल चौक से इंदिरा मार्केट जाने वाले रोड को बाबा अब्दुल रहमान शाह मार्ग घोषित किया। नाम बदलने की बात पर मजहब आड़े नहीं आया। एक उंगली भी नहीं उठी।
हिंदू भाई मुस्लिम समुदाय के उर्स में हर साल लंगर कराता है। पिछले 35 साल में सबकुछ बदला, लेकिन लंगर की रीत अब भी वैसे ही पूरे शबाब पर होती है। ईद-मिलादुन्नबी पर हिंदू भाई स्वागत करते हैं तो दीवाली पर मुस्लिम मिठाइयां बांटते हैं।