दुर्ग में महापौर के पद से राजनीतिक सफर शुरू करने वाली सरोज पांडेय इन दिनों भाजपा के राष्ट्रीय इकाई में महत्वपूर्व दायित्व संभाल रही है। महापौर के साथ विधायक और सांसद तीनों पद में जीत का रिकॉर्ड भी उनके नाम है। सरोज दो बार महापौर रहीं। इसके बाद वर्ष 2008 में वैशालीनगर विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुईं। लोकसभा चुनाव 2009 में सांसद के रूप में निर्वाचित हुईं। दुर्ग सांसद के साथ सरोज भाजपा की राष्ट्रीय महिला मोर्चा की अध्यक्ष भी रहीं। अब भाजपा की राष्ट्रीय महामंत्री का पद संभाल रही हैं।
सरोज पांडेय के जीत के बाद कांग्रेस अब तक दोबारा दुर्ग फतह नहीं नहीं कर सकी है। सरोज के दो कार्यकाल के साथ 20 साल से निगम में भाजपा का कब्जा है। सरोज पांडेय के बाद डॉ. शिवकुमार तमेर महापौर चुने गए। अब चंद्रिका चंद्राकर इस पद को संभाल रही हैं। तमेर ने 2004 में त्रिकोणीय मुकाबले में नजदीकी जीत के बाद कुर्सी संभाली, वहीं पिछले चुनाव में चंद्रिका चंद्राकर ने कांग्रेस की प्रत्याशी को हराया था।
वर्ष 1999 में अप्रत्यक्ष प्रणाली में बदलाव के साथ नगरीय निकायों में निर्वाचित सदन का कार्यकाल 4 से बढ़ाकर 5 साल कर दिया गया। इससे पहले हर चार साल में पार्षदों का निर्वाचन होता था और निर्वाचित पार्षद हर साल महापौर का चुनाव करते थे। वर्ष 1994 के चुनाव के बाद पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश के तत्कालिन दिग्विजय सिंह सरकार ने महापौर के हर साल चुनाव पर रोक लगाकर कार्यकाल पूरे 4 साल के लिए कर दिया था।
वर्ष 1981 में नगर निगम बनने के बाद पहले दो परिषद में कुल 6 महापौर बने। इसमें सुच्चा सिंह ढिल्लो, आलमदास गायकवाड़, गोविंदलाल धींगरा, शंकरलाल ताम्रकार, आरएन वर्मा शामिल हैं। सुच्चा सिंह का कार्यकाल सिर्फ 2 माह का रहा। उन्हें पद बीच में छोडऩा पड़ा। बचे हुए 10 माह के लिए आलमदास गायकवाड़ ने महापौर की कुर्सी संभाली। शंकरलाल ताम्रकार एक-एक साल के दो कार्यकाल तक महापौर रहे। वहीं आरएन वर्मा 4 साल पद पर रहे। वर्ष 1981 से 1984 और फिर 1988 से 1994 तक निगम में प्रशासक का राज रहा। इसके बाद तीसरे चुनाव में भाजपा का सरोज पांडेय के माध्यम से पहली बार खाता खुला।