अज्ञान जब अपने ज्ञान में आता है तब नए जीवन का प्रारंभ जिनकुशल दादाबाड़ी मालवीय नगर में विचक्षण सत्संग सभा में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए मणिप्रभाश्री ने यह बातें कही। उन्होंने कहा शरीर में आत्मा के बिना कोई भी क्रिया संभव नहीं हैं। आत्मा से शरीर की महत्ता हैं। मनुष्य भव में आत्म चिंतन करें आत्मा को समझें। जब तक आयुष्य है, जब तक सांस हैं। चेतनतुल्य आत्मा शरीर में उपस्थित है, तब तक साधना आराधना स्वाध्याय और आत्मा चिंतन से अपना भाव जगत बदलने पुरूषार्थ किया जा सकता है। उन्होंने कहा स्वाद हमारी भोग रूचि को बढ़ाता है। यह तृष्णा है और कभी समाप्त नहीं होती। एकाग्रता से किया गया सत्संग श्रवण अनंत जीवन में सम्यक ज्ञान का उजाला भर देता हैं। अपना अज्ञान जब अपने ज्ञान में आता है तब नए जीवन का प्रारंभ होता है। जड़ और चेतन का संबंध बोध जिसे होता है, वह आत्म कल्याण के मार्ग में आगे बढ़ जाता हैं।
हर दिन करें 10 बार आत्मचिंतन
उन्होंनें कहा कि जीवन में उम्र का महत्व हैं। सही उम्र में किया गया आत्म चिंतन भाव बदले में सहायक होता हैं। उम्र निकल जाने पर गलतियों का अहसास मन को आत्म ग्लानि से भर देता हैं। जरूरी है कि सही उम्र में आत्म चिंतन कर मन में बदलाव कर, मन को शुद्ध करें और परमात्मा के मार्ग पर चलने पुरूषार्थ करें। उन्होंने श्रावकों को दिन में 10 बार आत्म चिंतन कर भाव बदलने के पुरूषार्थ के लिए प्रेरित किया।
15 अगस्त को भगवान नेमीनाथ जयंती पर विशेष आयोजन श्री विचक्षण चातुर्मास समिति के भीखमचंद लोढ़ा ने बताया कि सभा में भंडारा, गीदम, नागपुर, जयपुर, बैतूल, खेतिया से पहुंचे श्रद्धालुओं का जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ की ओर से सम्मान किया गया। इसके साथ ही सभा में 15 अगस्त को भगवान नेमीनाथ जयंती के अवसर पर विशेष आयोजन की जानकारी भी दी गई।