हैरत भरी नजरों से देखते थे सहकर्मी
भिलाई स्टील प्लांट के टीएनडी डिपार्टमेंट में चार्जमैन के रूप में कार्यरत सविता मालवीय ने बताया कि जब उन्होंने 1996 में नौकरी ज्वाइन की उस वक्त प्लांट में महिला कर्मियों की संख्या गिनी-चुनी थी। पॉलीटेक्निक के बाद डिप्लोमा इंजीनियरिंग करने वाली लड़कियों को उस समय बीएसपी में नौकरी नहीं दी जाती थी। प्रबंधन की ऐसी सोच थी कि प्लांट के अंदर महिला कर्मी हार्ड वर्क नहीं कर पाएंगीं। तब हमारी बैच ने इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाया और चार साल तक प्रबंधन से लड़ाई लड़ी। तब जाकर हमें बीएसपी में नौकरी मिली। ये संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ। नौकरी लगने के बाद भी प्लांट के अंदर कोई भी डिपार्टमेंट मुझे और मेरे साथ दो और लड़कियों को लेने के लिए तैयार नहीं था। छह महीने तक हमें डिपार्टमेंट ही अलॉट नहीं हुआ। कार्य स्थल में भेदभाव देखकर फिर आवाज उठाई तब जाकर हमें जिम्मेदारी दी गई। उस वक्त सहकर्मी पुरुष साथी हमें हैरत भरी नजरों से देखते थे कि कैसे महिला होकर हम प्लांट में नौकरी करने आ गई हैं।
भिलाई स्टील प्लांट के टीएनडी डिपार्टमेंट में चार्जमैन के रूप में कार्यरत सविता मालवीय ने बताया कि जब उन्होंने 1996 में नौकरी ज्वाइन की उस वक्त प्लांट में महिला कर्मियों की संख्या गिनी-चुनी थी। पॉलीटेक्निक के बाद डिप्लोमा इंजीनियरिंग करने वाली लड़कियों को उस समय बीएसपी में नौकरी नहीं दी जाती थी। प्रबंधन की ऐसी सोच थी कि प्लांट के अंदर महिला कर्मी हार्ड वर्क नहीं कर पाएंगीं। तब हमारी बैच ने इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाया और चार साल तक प्रबंधन से लड़ाई लड़ी। तब जाकर हमें बीएसपी में नौकरी मिली। ये संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ। नौकरी लगने के बाद भी प्लांट के अंदर कोई भी डिपार्टमेंट मुझे और मेरे साथ दो और लड़कियों को लेने के लिए तैयार नहीं था। छह महीने तक हमें डिपार्टमेंट ही अलॉट नहीं हुआ। कार्य स्थल में भेदभाव देखकर फिर आवाज उठाई तब जाकर हमें जिम्मेदारी दी गई। उस वक्त सहकर्मी पुरुष साथी हमें हैरत भरी नजरों से देखते थे कि कैसे महिला होकर हम प्लांट में नौकरी करने आ गई हैं।

एक लंबे संघर्ष के बाद हिंदुस्तान स्टील एम्पलाइज यूनियन (सीटू) भिलाई की साल 2019 में पहली महिला अध्यक्ष चुनी गई सविता कहती हैं कि भिलाई स्टील प्लांट अपने फौलादी लोहे के लिए पूरे विश्व में पहचाना जाता है। समय के साथ अब यहां लोगों की सोच भी बदल रही है। प्लांट के अंदर चाहे वो महिला नियमित कर्मी या हो फिर ठेका श्रमिक, पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर उत्पादन में कीर्तिमान रच रहीं हैं।
परिवार, जॉब और यूनियन के बीच तालमेल बैठाने में होती थी थोड़ी दिक्कत सविता ने बताया कि शुरुआत में जब उन्होंने यूनियन ज्वाइन किया उस वक्त परिवार, जॉब और यूनियन की गतिविधियों के बीच तालमेल बैठाने में थोड़ी दिक्कत होती थी। श्रमिकों और खासकर महिला कर्मियों की समस्याएं देखकर मन में दृढ़ इच्छाशक्ति जागी कुछ कर दिखाने की। इसलिए अब बिना रूके हर किसी के समस्या को सुलझाने प्रबंधन से भिड़ जाती हूं। लोहे के कारखाने में काम करते हुए मन से ये भेद मिट सा गया है कि मैं एक लड़की हूं।