पंडित उमेश भाई जानी ने बताया कि सावन के महीने में महादेव को जल चढ़ाने के पीछे मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब विष निकला तब चारो ओर हाहाकर मच गया। विष के असर से देवता और असुर परेशान हो गए। तब सभी ने मिलकर त्रिनेत्रधारी शिव से प्रार्थना कर विष को ग्रहण करने कहा। महादेव ने समुद्र से निकले विष को पीकर उसे अपने कंठ में रख लिया। उनका कंठ विष के असर से नीला पड़ गया। उनके पूरे शरीर में जलन होने लगी। तब सभी देवताओं और भक्तों ने उन पर लगातार जल अर्पण किया और यह सिललिसा महीने भर चला।उस वक्त वह महीना सावन का था। इसलिए सावन के महीने में महादेव को कुछ अर्पण करें या ना करें पर उन्हें जल अर्पण करने से ही वे प्रसन्न हो जाते हैं।
सावन के लगते ही सैकड़ों की तादात में शिवभक्त कांवर यात्रा को भी रवाना हो रहे हैं। वहीं स्थानीय नदियों से भी कांवर में जल उठाकर भक्त अपने गली-मोहल्ले के मंदिरों में जलअर्पण कर रहे हैं। दुर्ग की शिवनाथ नदी, सहित अंचल के आसपास के गांवों में भी लोग कांवर यात्रा का आयोजन कर रहे हैं। इधर झारखंड के देवघर स्थित बाबा बैजनाथ को जल अर्पण करने भी शिवभक्त कांवर यात्रा में जा रहे हैं।