समूह ने असेंबलिंग का काम तो शुरू कर दिया, लेकिन यहा छोटे स्तर पर था। अपनी बड़ी सोच के साथ इस प्रोडक्ट को मार्केट में उतारा गया। डिसएबल्ड (नि:शक्त) इसे बना रहे थे, इसलिए उनकी ताकत को ब्रांड बनाने प्रोडक्ट का नाम दिया गया डिजि-एबल्ड।
शुरूआती स्तर पर प्रोडक्ट बनाने पर नि:शक्त को लगभग 3000 रुपए आय हुई। सुकमा जैसी जगह पर अपने प्रोडक्ट से यह बड़ी शुरूआत थी। कुणाल बताते हैं कि बिक्री के आधार पर प्रोडक्ट तैयार किए जा रहे हैं। बड़े ऑर्डर मिलने या मार्केट तैयार होने पर इनकी आय कई गुना बढ़ जाएगी।
छत्तीसगढ़ में अब सुकमा के बाद जशपुर जिले में भी नि:शक्तों का एक समूह इन प्रोडक्ट्स को तैयार कर रहा है। इनके काम को देखते हुए प्रशासन ने भी सहयोग का हाथ आगे बढ़ाया है। तत्कालीन कलेक्टर ने समूह को भूमि उपलब्ध कराने की पहल की है।
एलइडी बल्ब, इनवर्टर बल्ब के बाद अभी समूहों ने पॉवर बैंक बनाना शुरू किया है। इसके बाद बस्तर के वुडन वर्क की पहचान से खुद को जोडऩे की है। इसके लिए वुडन ब्लूट्रूथ स्पीकर बनाए जाएंगे। यह सुकमा सेंटर में ही बनेंगे।
आप किसी भी कंपनी का प्रोडक्ट खरीदते हैं तो उसमें सिर्फ कंपनी या ब्रांड नेम ही मिलता है, लेकिन डिजि-एबल्ड के हर प्रोडक्ट के साथ उसको बनाने वाले नि:शक्त को सीधे जोडऩे की नायाब कोशिश की गई है। जब भी आप उनका बनाया प्रोडक्ट लेते हैं और उसकी पैकिंग खोलते हैं तो उसमें से एक विजिटिंग कार्ड निकलेगा जिस पर उसको बनाने वाले की फोटो और नाम होगा। इसके साथ बार कोड रहेगा जिसको स्कैन करके उसको बनाने वाला की लाइफ हिस्ट्री (प्रोफाइल) आप जान सकेंगे।