गायत्री निषाद समाज की थी। गायत्री की एक ढाई साल की बेटी है। गायत्री व भागवत प्रसाद दोनों अपने समाज से बहिष्कृत थे। एक पत्नी के रहते दूसरी जाति की महिला को चूड़ी पहनाकर लाने के कारण समाज ने बहिष्कृत कर दिया था। समाज से बहिष्कृत होने के कारण ही महिला के अंतिम संस्कार में जाति बिरादरी के लोग शामिल नहीं हुए।
विवेचना अधिकारी अंडा थाना जश्मिका कुम्हारे ने बताया कि गायत्री धनकर ने फांसी लगाकर आत्महत्या की है। मामले में मर्ग कायम किया गया है। मामले में जांच की जा रही है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। मायके व ससुराल वाले भी नहीं आए क्योंकि अंतिम संस्कार में शामिल होने पर उन्हें भी समाज से बहिष्कृत होने का भय था।
पोस्टमार्टम के बाद मॉरच्यूरी से शव को गृह ग्राम लाने के लिए भागवत धनकर सोमवार को सुबह अपने रिश्तेदारों के घर गया। कोई रिश्तेदार आने के लिए तैयार नहीं हुआ। उनका कहना था कि समाज ने जिस महिला के नाम से उसे बहिष्कृत किया है उसके अंतिम संस्कार में नहीं जा सकते, अन्यथा उन्हें भी समाज की बैठक में दंड देना पड़ेगा। इसके बाद भागवत अपने समाज के लोगों को छोड़ मोहल्ले के अपने साथी के साथ मॉरच्यूरी पहुंचा। पोस्टमार्टम के बाद मुक्ताजंली वाहन के चालक की मदद से शव को वाहन में रखकर अंतिम संस्कार के लिए गृह ग्राम निकुम ले गया।
भागवत को संदेह था कि गायत्री गांव के ही एक अन्य युवक से प्रेम कर रही थी। युवक के बारे में पूछताछ करने पर वह चुप हो गई थी। शनिवार की रात गांव के युवक पर नजर पड़ी। वह उसके कमरे से निकल रहा था। इसकी सूचना भागवत ने रात में मोहल्ले के लोगों को दी। मामला रात में शांत रहा। सुबह भागवत ने पंचायत पहुंचकर बैठक बुलाने कहा। गांव वालों ने सुबह 9.30 बजे का समय निर्धारित किया।
गायत्री के पति ने बताया कि उसने तीन वर्ष पहले प्रेम विवाह किया था। दोनों पत्नी को साथ रखा था। मुझे समाज से अलग कर दिया गया है। इसलिए गायत्री के अंतिम संस्कार में कोई नहीं आया। शनिवार की रात गायत्री के कमरे में गांव के ही एक लड़के के होने की सूचना मिली थी। इसकी शिकायत मंैने प्रबुद्धजनों से की थी। रविवार को सुबह ९.३० बजे इस विषय को लेकर बैठक होनी थी। इसी बीच गायत्री ने आत्महत्या कर ली।
गायत्री निषाद समाज की थी। वहीं भागवत गड़रिया समाज से नाता रखता है। दोनों ने तीन वर्ष पहले प्रेम विवाह किया था। सामाजिक व्यवस्था के तहत भागवत कु टुंब से अलग है। गायत्री का अंतिम संस्कार अन्य सामाज के लोगों ने चंदा कर किया है। बस्ती के सभी लोगों ने मदद की है। अंतिम संस्कार में निषाद व गड़रिया सामाज के लोग शामिल नहीं हुए।
गायत्री को विवाह के कुछ माह बाद ही उसके पहले पति ने छोड़ दिया था। वह गृह ग्राम में रहने लगी। भागवत पहले से विवाहित था। इसी बीच वह गायत्री के करीब आया। फिर उससे प्रेम विवाह कर उसे घर ले आया। एक वर्ष बाद गायत्री ने एक बच्ची को जन्म दिया। भागवत ने घर के एक कमरे में अपनी विवाहित पत्नी को भी रखा है। गायत्री के लिए दूसरा कमरा था। दोनों पत्नी का खर्च भागवत स्वयं उठा रहा था।
भागवत धनकर (35 वर्ष) मजदूरी करता है। बस्ती में बाजार चौक के पास रहता है। भागवत को जब पारिवारिक मदद नहीं मिली तो मोहल्ले के लोगों ने चंदा एकत्र किया। ग्रामीणों ने अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी और कंडा एकत्र किया।दस दिन के कार्यक्रम के लिए चावल और हैसयित के अनुसार किसी ने 50 तो किसी ने 100 रुपए की मदद की। अंतिम संस्कार शाम चार बजे गांव के मुक्तिधाम में किया गया। जिसमें मोहल्ले के कुछ लोग शामिल हुए।