प्रकरण के मुताबिक घटना 23 नवंबर 2011 की है। आरोपियों ने तांत्रिक विद्या से धन व ऐश्वर्य हासिल करने के लिए नर बली की साजिश रची थी। घिनौने अपराध को अंजाम देने में रुआबांधा झुग्गी बस्ती में स्वयं को काली माता का भक्त प्रचारित करने वाली कथित गुरुमाता किरण यादव व उसके पति ईश्वरी लाल की महत्वपूर्ण भूमिका थी। बाद में योजना में दोनों आरोपी दंपती ने अपने बच्चों व शिष्यों को भी शामिल कर लिया। योजनाबद्ध तरीके से पड़ोस में रहने वाले दो वर्ष के मासूम चिराग पिता पोषण राजपूत का पहले अपहरण किया। बाद में काली माता के सामने अनुष्ठान करते हुए चिराग की बली चढ़ा दी थी। कू्ररतापूर्वक बली चढ़ाने के बाद आरोपियों ने मासूम के शव को अपने घर के अंदर जमीन की खुदाई कर दफना दिया। मासूम के अचानक लापता होने के परिजनों व मुहल्लों के नागरिकों ने खोजबीन शुरु की। आरोपी के संदिग्ध गतिविधियों के कारण ही नागरिकों ने आरोपी के निवास में प्रवेश कर पूछताछ की। तब जाकर मामले का खुलासा हुआ। इस मामले में कुल सात आरोपियों को तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश गौतम चौरडिय़ा ने मार्च 2014 में फांसी की सजा सुनाई थी।
हेमंत साहू (28), सुखदेव यादव (35), महानंद ठेठवार (32), राजेन्द्र कुमार महार (23), निहालुद्दीन उर्फखान बाबा (60)। रिकॉल- जानिए क्या हुआ था 23 नवंबर 2011 को यह दिलदहलाने वाली घटना 23 नवंबर 2011 की है। अभियुक्त दंपती खुद को तांत्रिक बताते थे। उनके बहुत से शिष्य थे। वे कथित तांत्रिक इश्वरी यादव की पत्त्नी किरण बाई यादव को गुरूमाता संबोधित करते थे। तांत्रिक प्रक्रिया से धन और एश्वर्य कमाना आसान मानते थे। इसके लिए वे अपने शिष्यों को बलि चढ़ाने की बात कहते थे। तांत्रिक दंपती ने शिष्यों के साथ योजना बनाई और अपने पड़ोसी पोषण सिंह राजपूत के दो साल का बोटा चिराग का अपहरण कर लिया और उसकी हत्या कर दी। मासूम का अपहरण तांत्रिक के नाबालिग पुत्र व हेमंत साहू ने की थी। इसके बाद तांत्रिक ने पूजा किया। ईश्वरी लाल ने धारदार चाकू से मासूम के दोनों गाल को कान तक काटा। फिर जीभ को काटा। ईश्वरी लाल की पत्नी किरण ने उसी चाकू से मासूम का सिर धड़ से अलग कर दिया। बलि देते समय शेष पांच आरोपियों ने मासूम को पकड़े रखा था।
बाद में साक्ष्य छिपाने के उद्देशय से आरोपियों ने तांत्रिक के आवास में ही क्रब खोदकर शव को दफना दिया। कथित तांत्रिक ने मासूम के खून को पात्र में एकत्र किया था। बाद में खून व घटना स्थल की मिट्टी का मिश्रण कर ताबीज तैयार किया गया और फिर सभी आरोपियों ने उसे धारण कर लिया था। फोरेंसिंक जांच में खुलासा हुआ कि ताबीज में मिट्टी में लगा रक्त और मासूम का रक्त एक है। मासूम का ब्लड गु्रप बी पाजेटिव था।
बलि चढ़ाने की सूचना मिलते ही खुदाई कर शव बाहर निकाला गया। मासूम का शव दो हिस्सों में मिला। जांच में खुलासा हुआ कि आरोपी का परिवार पहले नेवईभाठा में रहता था। परिवार की संदिग्ध गतिविधियों के कारण ही नेवईभाठा से उसे भगाया गया था। इस घटना के आठ माह पहले आरोपी का परिवार रुआबांधा में आकर रहने लगा था।
पूछताछ में यह बात सामने आई कि वह छह माह पहले ही उन्होंने मनिषा नामक 6 साल बच्ची का बलि दिया है। घर से पुलिस ने एक नर कंकाल बरामद किया था। इस प्रकरण में भी जिला न्यायालय ने आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी। हालांकि इस प्रकरण में आरोपियों की सजा को हाईकोर्ट ने कारावास की सजा में तब्दील कर दी है।