अन्य राज्य से क्यों पिछड़ रहे
मंत्री को कर्मियों ने बताया कि बजट राज्य को केंद्र से मिल रहा है। मध्यप्रदेश, उडीसा, गुजरात, उत्तर प्रदेश में कर्मियों को बराबर मानदेय दिया जा रहा है तो छत्तीसगढ़ के कर्मिर्यों के साथ अधिकारी भेदभाव क्यों कर रहे हैं। कर्मियों को दूसरे राज्यों के बराबर मानदेय दिया जाए।
राज्य के भीतर भी किया जा रहा भेदभाव
कर्मियों ने स्वास्थ्य मंत्री को बताया कि एक ओर अधिकारी बता रहे हैं कि जितनी योग्यता कर्मियों की है उसके मुताबिक बेसिक मानदेय दिया जा रहा है। दूसरी ओर राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत ही कुष्ठ, मलेरिया व टीबी जैसे विभाग में काम करने वाले एक जैसे पद के कर्मियों को अलग-अलग बेसिक मानदेय दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत मलेरिया व टीबी में एक जैसे पद पर काम करने वाले कर्मियों को, जिनकी शैक्षणिक योग्यता भी एक जैसी है, दोनों का मानदेय अलग-अलग है। टीबी वालों को 17 हजार तो मलेरिया वाले संविदा कर्मियों को 32 हजार दिया जा रहा है।
सांसद से भी कर चुके हैं शिकायत
छत्तीसगढ़ के टीबी विभाग के कर्मियों की ओर से एक प्रतिनिधि मंडल दुर्ग लोकसभा क्षेत्र के सांसद विजय बघेल से मिलकर इस मामले में शिकायत किया था। कर्मियों का कहना था कि केंद्र से उनको अन्य राज्य के बराबर मानदेय दिलाने में वे मदद करें। सांसद ने इस विषय को लेकर दिल्ली में संबंधित विभाग से चर्चा कर रास्ता निकालने का भरोसा दिलाया है।
अधिकारियों की गलती से हैं परेशान
अशोक उइके, प्रदेश अध्यक्ष, टीबी एम्लॉय एसोसिएशन ने बताया कि टीबी कर्मचारियों को मानदेय दूसरे राज्य की अपेक्षा कम मिल रहा है, इसके लिए अफसर ही जवाबदार हैं। जिसकी शिकायत करने मंत्री तक हम गए। मंत्री खुद प्रकरण को देखते तो जल्द इंसाफ मिलता। वे वापस उन अधिकारियों को ही फाइल दे रहे हैं। इससे कर्मियों में निराशा है।
कर्मियों के हक में हो फैसला
मदन विश्वकर्मा, कोषाध्यक्ष, टीबी एम्लॉय एसोसिएशन ने बताया कि टीबी के काम में लगे कर्मचारी कम वेतन मिलने की वजह से परेशान हैं। वे आंदोलन में इस वजह से नहीं जा रहे हैं क्योंकि उनके जिम्मे में हजारों टीबी मरीजों का इलाज है। राज्य सरकार से मांग कर रहे हैं कि कर्मियों के हक में फैसला जल्द ले।
मुख्यमंत्री करे हस्ताक्षेप
मिलिंद पाटिल, जोनल अध्यक्ष, टीबी एम्लॉय एसोसिएशन ने बताया कि छत्तीसगढ़ में वर्तमान में मितानिनों का आंदोलन जारी है। इसके बाद टीबी या दूसरे स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी भी आंदोलन में न जाएं। इसको लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को हस्ताक्षेप करने की जरूरत है। वे लगातार आम लोगों और कर्मियों के हित में फैसले ले रहे हैं।