बच्चों को स्कूल से निकालने के मामले में प्राचार्य अरविंद तिवारी अपना अलग ही तर्क दे रहे हैं। उनका कहना है कि इन बच्चों को सप्लीमेंट्री का मौका भी दिया गया पर वे फेल हो गए। जबकि मिशन बेटर एजुकेशन के माध्यम से डीईओ ने कमजोर बच्चों के लिए अलग ही तरह का कोर्स डिजाइन किया है।
अब प्राचार्य कमजोर बच्चों से पीछा छुडाऩे का तरीका खोज रहे हैं। स्टेशन मरोदा स्कूल में प्राचार्य डॉ अरविंद तिवारी ने एेसा ही किया। जगह की कमी बताकर बच्चों को निकाल दिया। इस वर्ष स्कूल में 9वीं में 117 बच्चों को प्रवेश दिया गया है। जबकि अगर प्राचार्य चाहते तो इन 35 बच्चों के भविष्य को ध्यान में रख उतने ही बच्चों को नवमीं में प्रवेश देते जितनी उनके पास बैठाने की जगह है।
Q आपके स्कूल में नवमीं फेल बच्चों को टीसी क्यों दे दी गई?
A उनको पूरक में भी मौका दिया गया था, पर वे पास नहीं हुए। हमारे पास बैठाने को जगह भी नहीं है।
Q स्कूल से निकालने का नियम तो नहीं है? फिर कैसे टीसी दे दी?
A इस वर्ष 117 बच्चों ने नवमीं में प्रवेश ले लिया है। हमारे पास दो ही सेक्शन है। उनके पास ओपन स्कूल का भी विकल्प है।
Q पर वे नियमित छात्र के रूप में पढऩा चाहते हैं?
A वे उमरपोटी के स्कूल क्यों नहीं जाते, वहां भी तो जगह खाली है।
जिला शिक्षा अधिकारी आशुतोष चावरे ने बताया कि सरकारी स्कूलों में बच्चों को फेल होने पर भी निकालने का नियम नहीं है। प्राचार्य ने गलत किया है। पुराने बच्चों को पहले मौका देने के बाद ही उन्हें सीट के मुताबिक नए बच्चों को प्रवेश देना था। मैं मामले की जांच करूंगा।