भिलाई

जर्मनी के विवि में छाए छत्तीसगढ़ के शोधार्थी, बताया किस तरह पहचान सकते हैं जटिल बीमारी को लक्षण से पहले

डिपार्टमेंट ऑफ सस्टेंस बयोलॉजी एंड बायोइंफ्राामेटिक के डिसिज मेकिग एंड कम्यूनिटी मीटिंग में अपने रिसर्च पेपर प्रेजेंट करने छत्तीसगढ़ से सिर्फ इन तीन शोधार्थियों का ही चयन हुआ था।

भिलाईDec 02, 2021 / 05:57 pm

Dakshi Sahu

जर्मनी के विवि में छाए छत्तीसगढ़ के शोधार्थी, बताया किस तरह पहचान सकते हैं जटिल बीमारी को लक्षण से पहले

भिलाई. छत्तीसगढ़़ स्वामी विवेकानंद तकनीकी विवि में पीएचडी के छात्र सौम्या खरे, ज्योत्सना चौबे और ज्योतिकांत चौधरी ने यूनिवर्सिटी ऑफ रॉसटोक जर्मनी में अपने-अपने रिसर्च पेपर प्रेजेंट कर ग्लूकोमा, थैलेसीमिया और मुंह के कैंसर के होने के पहले की पहचान के तरीके बताए। खासकर छत्तीसगढ़ में एक जाति विशेष में पाए जाने वाले अनुवांशिक बीमारी सिकलसेल और थैलेसीमिया के लिए नेचुरल तरीके से मेडिसीन प्लान से दवा इजाद करने के बारे में बताया। डिपार्टमेंट ऑफ सस्टेंस बयोलॉजी एंड बायोइंफ्राामेटिक के डिसिज मेकिग एंड कम्यूनिटी मीटिंग में अपने रिसर्च पेपर प्रेजेंट करने छत्तीसगढ़ से सिर्फ इन तीन शोधार्थियों का ही चयन हुआ था।
औषधीय पौधों से थैलेसीमिया की दवा
पीएचडी की छात्रा सौम्या खरे बीटा थैलेसीमिया की बीमारी पर अपना रिसर्च कर रही है। उन्होंने बताया कि बीटा थैलेसीमिया एक विकार है जिसमें शरीर में हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता। शरीर में हीमोग्लोबिन को बनने के लिए जरूरी तत्वों को फिर से सक्रिय करने वे प्राकृतिक तरीके से कुछ औषधीय पौधों के जरिए वे दवा डिजाइन करने जा रही है। जिससे उनमें हीमोग्लोबिन बन सकें। छत्तीसगढ़ में तीन प्रतिशत लोग थैलेसीमिया और सिकलसेल से प्रभावित है और अब तक इसकी कोई दवा नहीं बनी है जो शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा को बढ़ा सकें।
ग्लूकोमा के लक्षण से पहले हो पहचान
मध्यप्रदेश के ग्वालियर निवासी एवं सीएसवीयूटी में पीएचडी के छात्र ज्योतिकांत चौधरी आंखो की बीमारी ग्लूकोमा पर रिसर्च कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि यदि ग्लूकोमा के लक्षण दिखने से पहले ही पहचान लिया जाए तो उसके बढऩे से रोका जा सकता है। ग्लूकोमा के बढऩे के लिए टीजीएफ ग्रोथ पाथवे जिम्ेदार होता है। इसलिए ट्रांसफॅर्मिग ग्रोथ फैक्टर पाथवे को मुख्य बिंदू मानते हुए ग्लूकोमा की शुरुआत और रोग के बढऩे के पीछे के आणविक तंत्र का पता लगाया। उन्होंने बताया कि टीजीएफ के जरिए ग्लूकोमा रोग को बढऩे से रोकने और उसके लिए वे नई दवा की खोज कर रहे हैं।
कैंसर होने से पहले ही पहचान
छात्रा ज्योत्सना चौबे ने मुंह के कैंसर को लेकर किए अपने शोध को प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि कैंसर के शुरुआती लक्ष्ण से पहले कैंसर को होने में सहायक जीन को पहचाना जा सकता है। उन्होंने बताया स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा कैंसर मुंह में होने वाले कैंसर का सबसे आम प्रकार है। माइक्रोआरएनए के विश्लेषण से पता किया जा सकता है कि कैंसर तक पहुंचने में कौन-कौन सी जैविक प्रक्रिया, सेलुलर घटक काम करना शुरू करते हैं। इसके जरिए ही हम ऐसी चिकित्सा प्रणाली और दवा को डिजाइन कर सकते हैं।

Home / Bhilai / जर्मनी के विवि में छाए छत्तीसगढ़ के शोधार्थी, बताया किस तरह पहचान सकते हैं जटिल बीमारी को लक्षण से पहले

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.