तुलसी और शालिग्राम के विवाह की परंपरा उस वक्त शुरू हुई जब छल से भगवान विष्णु ने राजा जालंधर की पत्नी और अपनी भक्त वृंदा का सतीत्व भंग किया। देवता जब युद्ध में जांलधर को हरा नहीं पाए तब उन्होंने विष्णु की शरण ली। तब पूजा में बैठी वृंदा के सामने भगवान विष्णु उसके पति के रूप में गए तो वृंदा ने उनके चरण छुए ।
इधर देवताओं ने युद्ध में जालंधर के सिर को धड़ से अलग कर दिया और वह धड़ वंृदा के सामने गिरा। इसी वक्त वंृदा ने भगवान विष्णु छल से उनका सतीत्व भंग करने की वजह से श्राप देकर पत्थर का बना दिया। लक्ष्मी जी की प्रार्थना से वृंदा ने अपना श्राप वापस तो ले लिया पर वह पति के सिर को लेकर सती हो गई । उसकी राख से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।
पंडित पवन चौबे ने बताया कि 12 नवंबर को गुरु अस्त हो गया है। 7 दिसंबर को अमावस्या के दिन उदित होगा। विवाह के मुहुर्त 7 दिसंबर के बाद ही होंगे। विवाह के मुहूर्त में चंद्र, गुरु और शुक्र की मौजूदगी जरूरी है। इनमें से एक भी अस्त होता है तो विवाह का श्रेष्ठ मुहूर्त नहीं होता। इसलिए इस बार तुलसी विवाह के दिन कम विवाह है।
देवउठनी एकादशाी पर सोमवार को भगवान विष्णु जागेंगे। इस दौरानघरों में तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाएगा। देवउठनी एकादशी के दिन मीठे गन्ने के मंडप में तुलसी मैया और शालिग्राम का विवाह होगा और उनको मौसमी फल, भाजियां, सब्जियां आदि का भोग लगाया जाएगा। जिसमें चना भाजी, लालभाजी, मूली, अमरूद, सीताफल, बेर, गन्ना, बैगन आदि चीजें शामिल होंगी।