ब्लैक फंगस निकालने के बाद ही असर करती है दवा
ब्लैक फंगस की वजह से दवा मरीज के उस हिस्से तक नहीं पहुंच पाती, जहां तक उसे पहुंचना है। इस वजह से ही ऑपरेशन कर पहले ब्लैक फंगस को हटाया जाता है जिसके बाद इंजेक्शन व दवा दिया जाता है। तब जाकर दवा मरीज के उस हिस्से तक पहुंचती है। जहां ब्लैक फंगस की दीवार बन गई थी।
नहीं मिल रही दवा
ब्लैक फंगस ऑपरेशन के बाद मरीज को जो दवा दी जानी है, वह मार्केट में नहीं मिल रही है। असल में इन दवाओं का उत्पादन ही कम होता है। जिसकी वजह से इसकी दर भी अधिक होती है। अब मरीज बढ़ रहे हैं तब दवा कम पड़ रही है। इस वक्त मार्केट में इसकी दवा आसानी से नहीं मिल रही है। स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है कि इसकी उपलब्धता को सुनिश्चित करे। अगर अभी ध्यान नहीं दिया गया तब कालाबाजारी होने लगेगा।
मंहगा है इलाज
ब्लैक फंगस होने पर पहले ऑपरेशन किया जाता है। इसके बाद मरीज को एम्पोटेरिसन बी (लाइपोजोमल) का इंजेक्शन दिया जाता है। यह इंजेक्शन से किडनी पर प्रभाव कम पड़ता है। दूसरे से अधिक असर होता है। इस एक इंजेक्शन की कीमत सात हजार रुपए है। इस तरह की 40 इंजेक्शन दिया जाना है। 2,80,000 रुपए का इंजेक्शन ही देना पड़ता है। इसके अलावा पांच सौ रुपए की एक दवा आती है जिसे दिन में तीन बार देना होता है। यह दवा तीन माह तक दिया जाना है। इस तरह से 1,35,000 रुपए की दवा देना होगा। इस तरह से यह दो दवा ही 4,15,000 रुपए की पड़ रही है। अब अगर इन दवाओं का ब्लैक में लेना पड़ जाए तो मरीज के लिए दिक्कत हो जाएगा।
जिला में 25 से अधिक मरीज
भिलाई के एक निजी अस्पताल में ब्लैक फंगस के करीब १५ से अधिक मरीज आ चुके हैं। जिसमें से दो का ऑपरेशन किया गया है। इसके अलावा करीब 15 से मरीज ने जांच करवाया है। इसके पहले सेक्टर-9 अस्पताल में ६ का इलाज चल रहा, 4 को हायर सेंटर भेजे हैं। एक की मौत हो चुकी है।
दो ब्लैक फंगस मरीजों का किए ऑपरेशन
बीएम शाह हॉस्पिटल, ईएण्डटी विशेषज्ञ, भिलाई डॉक्टर सुनील नेमा ने बताया कि दो ब्लैक फंगस से पीडि़त मरीजों का ऑपरेशन किया गया है। अब दोनों को दवा दिया जा रहा है। इस रोग में 25 फीसदी इलाज ऑपरेशन है। वहीं इसके बाद नियमित दवा का सेवन करना 75 फीसदी उपचार है। कोरोना दवा के दौरान शुगर अनियंत्रित होने की वजह से इसकी शिकायत दूसरे लहर में अधिक आ रही है।