महासचिव डीवीएस रेड्डी ने कहा है कि कुछ तथाकथित यूनियन लगातार एनजेसीएस को कोसने का सिलसिला शुरू कर दिए हैं। शायद उन्हें यह महसूस हो रहा है कि एनजेसीएस को कोसने से बीएसपी के कर्मी खुश होकर उन्हें वोट दे देंगे या फिर वे ऐसा मान रहे हैं कि इस्पात उद्योग के संकट के इस दौर में जितनी भी कटौती हो रही है, उसके लिए एनजेसीएस जिम्मेदार है। कोसने वालों को बता देना चाहते हंै कि अनजाने में ऐसी हरकत करके वे कर्मियों और प्रबंधन के मध्य चर्चा का अधिकार की मांग को लेकर चले लंबे संघर्ष के बाद, उद्योग स्तर पर, इस्पात उद्योग के लिए गठित भारत की पहली द्विपक्षीय समिति, एनजेसीएस को खत्म करने के लिए रची जा रही साजिश का हिस्सा बन रहे हैं।
उन्होंने कहा कि एनजेसीएस आज वेतन समझौता का पर्याय बन गया है। थोड़े से वोट पाने के लिए कर्मियों को गुमराह करने का असफल प्रयास कर्मियों के साथ बड़ा धोखा होगा। ऐसे तथाकथित तत्वों से कर्मियों को सावधान रहना होगा, ताकि वेतन समझौता सहित कर्मियों की सभी बंद सुविधाओं को पुन: बहाल करवाया जा सके।
सीटू ने कहा कि देश के अंदर कार्यरत सभी सार्वजनिक उद्योगों में केवल सेल एकमात्र ऐसा उपक्रम है। जहां पर कर्मियों को असीमित ग्रेच्युटी मिलती है। असीमित ग्रेजुएटी एनजेसीएस व सेल प्रबंधन के बीच 28 अक्टूबर 1970 को हुए पहला वेतन समझौता का हिस्सा है। पहला एनजेसीएस वेतन समझौता समझौते के दो साल बाद 1972 में भारत सरकार ने पेमेंट आफ ग्रेच्युटी एक्ट बनाया। इस एक्ट में किसी कर्मी को कितनी ग्रेच्युटी मिलेगी व ग्रेच्युटी किस तरह से गणना की जाएगी उस विषय में विस्तार से दर्ज है। समय समय पर भारत सरकार ने सेवानिवृत्ति होने वाले कर्मियों व अधिकारियों को दिए जाने वाले ग्रेच्युटी की सीमा को निर्धारित कर घोषित किया जाता है।
सीटू ने बताया कि अभी तक वर्तमान केंद्र सरकार लगातार इस बात के लिए सेल प्रबंधन पर दबाव बनाए हुए हैं कि कर्मियों को संघर्षों के बाद मिला असीमित ग्रेजुएटी को खत्म कर, सरकार से निर्धारित ग्रेच्युटी के दायरे में सभी को लाया जाए। जिसके तहत पिछले जुलाई 2014 में हुए वेतन समझौता में प्रबंधन ने इस बात को रखा कि 2014 के बाद से भर्ती होने वाले कर्मियों की ग्रेच्युटी को सरकार ने तय ग्रेच्युटी के दायरे में लाकर सीमित कर दिया जाय व लगातार दबाव बनाते रहे कि एनजेसीएस की यूनियन इस समझौते पर दस्तखत करें, लेकिन यूनियनों के साफ मना करने पर उन्होंने एनसीसीएस के समझौते से तो इस मुद्द को हटा दिया, लेकिन उसके बाद भर्ती होने वाले सारे कर्मियों से सीधे समझौता करके उन्हें एक्ट के तहत सीमित ग्रेच्युटी की दायरे में ला दिया है, जिस पर आने वाले दिनों में एनजेसीएस के अंदर ही इस विषय पर संघर्ष को और तेज किया जाएगा।
सीटू ने बताया कि जब सरकार ने पेंशन स्कीम के नाम पर कर्मचारी पेंशन योजना -95 को कर्मियों पर थोपा था, तब से एनजेसीएस ने इस बात को रखा था कि कर्मियों व प्रबंधन के अंशदान से पेंशन के लिए एक स्कीम बनाया जाए और पिछले वेतन समझौता में हुए निर्णय के अनुसार कर्मियों को कंपनी का अंशदान पेंशन के लिए मिलना संभव हो पाया। इसीलिए एनजेसीएस की भूमिका पर सवाल उठाने वाले ना केवल कर्मियों को गुमराह कर रहे हैं, बल्कि कर्मियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी कर रहे हैं।
सीटू ने ऐसे तथाकथित ट्रेड यूनियनों से सवाल पूछा है कि एनजेसीएस को कोसने वाले यह बताएं कि पिछले दिनों जब वह इन्हीं एनजीसीएस यूनियनों के सदस्य हुआ करते थे, तब उनकी भाषा क्या थी, क्योंकि आज अपने मतलब के लिए अलग-अलग यूनियनों में होने वाले यह तथाकथित यूनियनें पहले एनजेसीएस यूनियनों के ही सदस्य हुआ करते थे। वे बताए कि एनजेसीएस के बिना वेतन समझौता या अन्य सुविधाएं हासिल करना संभव है।