सचिव रमेश अग्रवाल ने बताया कि लगभग १२५ छोटे-बड़े कपड़ा उद्योगों में उत्पादन शुरू हो गया है। बड़ी व वृहद ईकाईयां भी जोड़ दें, तो यह आंकड़ा 150 के आस-पास होता है। सिंथेटिक वीविंग मिल्सएसोसिएशन से जुड़े हुए 135 सदस्यों के उद्योग बंद हैं। ये अधिकतर रीको क्षेत्र में हैं। उद्योग शुरू होने के बाद श्रमिकों व उद्योगों में लॉकडाउन पीरियड के वेतन को लेकर गतिरोध पर कलक्टर की अध्यक्षता में मीटिंग हुई। इसमें उनके एसोसिएशन, मेवाड़ चैंबर, भीलवाड़ा टेसटाइल ट्रेड फेडरेशन, लघु उद्योग भारती, ठेकेदार व लेबर यूनियन के प्रतिनिधि भी शामिल थे। वहां उद्योग को सुचारु चलाने के लिए सहमति से निर्णय लिए गए। उद्योगों ने कलक्टर के निर्देशानुसार ठेकेदारों को काम पर बुलाया। लेकिन काम नहीं करना चाहते है। ऐसे में वीविंग मिल्स एसोसिएशन के सभी 135 सदस्योंने मीटिंग कर निर्णय लिया कि जब तक ठेकेदार लिखकर नहीं देंगे तब तक उद्योग शुरू नहीं किया जाएगा। जो उद्योग शुरू हुए थे, उन्हें भी बंद कर दिया। जो उद्योग चले हैं, उनसे दो माह से बेरोजगार चल रहे हजारों श्रमिकों को भी काम मिला है। लेकिन यह मेहनत बेकार हो गई है।