
Bhilwara News: 'कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता, कभी धरती तो कभी आसमान है पिता।’ यह पंक्ति को सार्थक कर रहे हैं भीलवाड़ा के 70 वर्षीय छोगाराम भील। जिस वृद्धावस्था में पिता अपने बच्चों पर निर्भर होते हैं, उस उम्र में वे दृष्टिहीन बेटे की देखभाल में जुटे हुए हैं। जिंदगी भर मजदूरी कर पेट पालने वाले छोगाराम ने जीवन के 62 साल पूरे करने के बाद बूढ़ी हड्डियों को आराम देने की सोची थी। जवान बेटे ने घर-बार संभाल लिया था, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। आठ साल पहले उनके पैंतीस वर्षीय बेटे भैंरू भील की आंखों की रोशनी अचानक चली गई और छोगाराम को फिर पुरानी भूमिका में लौटना पड़ा।
मूलत: मांडल के रहने वाले छोगालाल आठ साल पहले तक मजदूरी किया करते थे। उम्र के साथ शरीर कमजोर हुआ तो मजदूरी छोड़नी पड़ी। इसी बीच, बेटे भैंरू की आंखों की रोशनी चली गई। ऐसे में उसे पालने का जिम्मा बूढ़े पिता छोगाराम के कंधों पर फिर आ गया। बुढ़ापे में मजदूरी नहीं मिली तो पांसल चौराहा इलाके में मांग कर गुजर-बसर करने लगे। पिता-पुत्र जैसे-तैसे पेट भरने के बाद चौराहे पर ही सड़क किनारे सो जाते हैं। रोजाना सुबह पांसल चौराहे पर मातारानी मंदिर में दर्शन से उनके दिन की शुरुआत होती है।
छोगाराम ने बताया कि बेटे भैंरू का बचपन में विवाह हो गया था। कुछ समय बाद पुत्रवधू की मौत हो गई। छोगाराम के नौ भाई थे, जिनमें आठ अब इस दुनिया में नहीं हैं। पूरे परिवार में दोनों ही बचे हैं। भैंरू की मां भी बेटे की आंखों की रोशनी जाने से पहले ही चल बसी थी।
छोगाराम ने बताया कि उसे और बेटे को पेंशन व सरकारी सुविधा नहीं मिल रही हैं। उसके पहचान पत्र व अन्य दस्तावेज खो गए। ऐसे में पेंशन पाने का रास्ता नहीं सूझता। चौराहे के पास दुकानदार चाय पिला देते हैं। लोग मदद कर देते हैं तो पिता-पुत्र खाना खा लेते हैं।
Published on:
03 Nov 2024 01:44 pm
बड़ी खबरें
View Allभीलवाड़ा
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
