https://www.patrika.com/damoh-news/shri-shashvashnath-digambar-jain-temple-will-be-at-munitri-s-chaturmas-4773643/ Jain Temple आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष नरेश गोधा ने बताया कि ने बताया कि सूर्योदय से पहले टांकों से पानी निकाला जाता है, क्योंकि सूर्य की किरण पडऩे पर पानी खराब होने या काई जमने की संभावना रहती है। जो भी सदस्य सुबह साढ़े चार बजे मंदिर आता है, वह चार घड़े पानी निकालता है। गर्म कर छानने के बाद इस जल से भगवान का अभिषेक व शान्तिधारा की जाती है। यहां आने वाले संतों की आहार क्रिया में भी यही पानी काम में लिया जाता है। मंदिर में प्रतिदिन सवा सौ से डेढ़ सौ श्रावक अभिषेक के लिए आते हैं। पयुर्षण के दौरान यह संख्या चार सौ तक होती है।
१९८६ में बना था मंदिर
मंदिर के सचिव अजय बाकलीवाल ने बताया कि मंदिर की स्थापना १९८६ में की गई थी। एक छोटी से वेदी में भगवान को विराजमान कर पूजा की जाती थी। मुनि सुधासागर के सान्निध्य में अप्रेल २००० में पंचाकल्याणक हुआ। मंदिर का निर्माण १९९२ में शुरू हुआ था। पंचकल्याण के बाद कुएं के जल से अभिषेक व शान्तिधारा की जाने लगी। कुएं का पानी खराब होने पर बोरिंग के जल से अभिषेक शुरू किया। उपाध्यक्ष महेन्द्र सेठी ने बताया कि २०१७ में आए मुनि प्रमाण सागर कहा कि या तो अभिषेक बन्द कर दो या फिर वर्षा जल से करो। इस पर मंदिर की छत पर टाइलें लगाकर परिसर में तीन टांकों का निर्माण करवाया गया। एक-दो बरसात के बाद साफ पानी को इनमें एकत्र करने लगे।
मंदिर के सचिव अजय बाकलीवाल ने बताया कि मंदिर की स्थापना १९८६ में की गई थी। एक छोटी से वेदी में भगवान को विराजमान कर पूजा की जाती थी। मुनि सुधासागर के सान्निध्य में अप्रेल २००० में पंचाकल्याणक हुआ। मंदिर का निर्माण १९९२ में शुरू हुआ था। पंचकल्याण के बाद कुएं के जल से अभिषेक व शान्तिधारा की जाने लगी। कुएं का पानी खराब होने पर बोरिंग के जल से अभिषेक शुरू किया। उपाध्यक्ष महेन्द्र सेठी ने बताया कि २०१७ में आए मुनि प्रमाण सागर कहा कि या तो अभिषेक बन्द कर दो या फिर वर्षा जल से करो। इस पर मंदिर की छत पर टाइलें लगाकर परिसर में तीन टांकों का निर्माण करवाया गया। एक-दो बरसात के बाद साफ पानी को इनमें एकत्र करने लगे।