scriptआचार्य ने दूसरे दिन भी किया 12 किलोमीटर का शहर भ्रमण | Acharya did a city tour of 12 km on the second day as well | Patrika News

आचार्य ने दूसरे दिन भी किया 12 किलोमीटर का शहर भ्रमण

locationभीलवाड़ाPublished: Oct 23, 2021 08:53:59 am

Submitted by:

Suresh Jain

चंद्रशेखर आजाद नगर से होते हुए कोठारी पब्लिक स्कूल पहुंचे

आचार्य ने दूसरे दिन भी किया 12 किलोमीटर का शहर भ्रमण

आचार्य ने दूसरे दिन भी किया 12 किलोमीटर का शहर भ्रमण

भीलवाड़ा।
आचार्य महाश्रमण ने शुक्रवार को दूसरे दिन भी नगर भ्रमण किया। सूर्योदय के बाद आचार्य ने चातुर्मास स्थल से मंगल विहार किया। चंद्रशेखर आजाद नगर से होते हुए कोठारी पब्लिक स्कूल पहुंचे, जहां आचार्य ने विद्यार्थियों को जीवन में अच्छे संस्कार अपनाने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्य की प्रेरणा से शिक्षकों व विद्यार्थियों ने अहिंसा यात्रा की संकल्प त्रयी को स्वीकार किया। जगह-जगह श्रद्धालु शिक्षिकाओं को दर्शन देते हुए आचार्य बापू नगर पहुंचे। यहां कई स्थानों पर मंगलपाठ सुनाया। कई श्रद्धालु ऐसे थे, जो अपनी शारीरिक अक्षमता के कारण चातुर्मास स्थल पर नहीं आ सकते, आचार्य को साक्षात अपने समक्ष पाकर धन्यता की अनुभूति कर रहे थे। एक स्थान पर मुनि प्रतीक कुमार ने आचार्य के चरणों में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। बाद में आचार्य महाप्रज्ञ सेवा संस्थान भवन में पहुंचे। संस्थान अध्यक्ष प्रकाश कर्णावट ने विचार व्यक्त किए। एसएन एकेडमी के विद्यार्थी ने आशीर्वाद लिया। इस दौरान आदिनाथ दिगंबर जिनालय एवं स्वर्णकार भवन के समक्ष आचार्य ने मंगलपाठ सुनाया।
चिलचिलाती धूप में लगभग 12 किलोमीटर के शहर भ्रमण के तहत आजाद नगर स्थित महाप्रज्ञ भवन भी पहुंचे। जहां श्रावक समाज ने आचार्य का स्वागत किया। तेरापंथ सभा के अध्यक्ष भेरूलाल चौरडिय़ा ने अपने विचार व्यक्त किए। दो दिन के भ्रमण की समाप्ति के बाद अब 25 व 28 अक्टूबर को पुन: आचार्य का नगर भ्रमण होगा।
मन ही उत्थान और पतन का कारण
वस्त्रनगरी में वर्ष 2021 का चतुर्मास कर रहे आचार्य महाश्रमण के नगर भ्रमण के कारण प्रतिदिन प्रात: में होने वाला मुख्य प्रवचन शाम को हुआ। आचार्य महाश्रमण कहा कि मन एक प्रकार की शक्ति है। मन वाला प्राणी बड़ा पुण्य कर सकता है, तो बड़ा पाप भी कर सकता है। बिना मन वाला प्राणी बड़ा पुण्य नहीं कर सकता, तो बड़ा पाप भी नहीं कर सकता। आदमी को अपने मन को दुर्मन नहीं सुमन बनाने का प्रयास करना चाहिए। मन ही उत्थान और पतन का कारण होता है। मन को उत्थान का कारण बनाने के लिए आदमी को धार्मिकता, अध्यात्मिकता व शुभ परिणामों से युक्त आचरण करना चाहिए। माया, मोह से मुक्त मन ही उत्थान की ओर ले जा सकता है। हमारा मन सुमन बने यह अपेक्षा है।
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