आचार्य महाश्रमण का त्याग एवं बलिदान की नगरी में मंगल प्रवेश
भीलवाड़ाPublished: Jul 11, 2021 10:26:52 pm
सौपीं शांति एवं सद्भावना की चाबी- हुई अगवानी, जगह-जगह स्वागत
आचार्य महाश्रमण का त्याग एवं बलिदान की नगरी में मंगल प्रवेश
भीलवाड़ा।
जैन धर्म संघ के आचार्य महाश्रमण का रविवार को त्याग एवं बलिदान की नगरी चित्तौडग़ढ़ नगर में अपनी धवल सेना के साथ मंगल प्रवेश हुआ। इस दौरान जैन एवं अन्य समाज की ओर से उनकी भव्य अगवानी की गई। जगह-जगह उनका स्वागत किया गया। नगर प्रवेश पर कांग्रेस नेता सुरेन्द्र सिंह जाड़ावत, सभापति संदीप शर्मा, नगर कांग्रेस अध्यक्ष प्रेम मूंदड़ा आदि के नेतृत्व में शांति एवं सदभावना के प्रतीक स्वरुप आचार्य महाश्रमण को चााबी सौंपी गई। इस चाबी पर चित्तौडग़ढ़ २०२१ लिखा हुआ था। इस मौके पर सभापति ने आचार्य महाश्रमण के समर्पण पत्र वाचन कर चित्तौडग़ढ़ में आशीर्वाद बना रहे। इस दौरान सात किलोमीटर पैदल चले सांसद एवं विधायकआचार्य महाश्रमण ने सुबह करीब छह बजे अरनियापंथ चित्तौडग़ढ़ के लिए से विहार किया। इस दौरान जालमपुरा चौराहे पर उनकी अगवानी सांसद सी.पी.जोशी एवं विधायक चन्द्रभान सिंह आक्या ने की। इसके बाद वे भी आचार्य की पदयात्रा में शामिल हो गए। करीब सात किलोमीटर पैदल ही सांसद जोशी, विधायक चन्द्रभान, पूव्र प्रधान प्रवीण सिंह आदि साथ चले।
तीसरी बार हुआ पदार्पण यह तीसरी बार है जब पूज्य श्री महाश्रमण चित्तौड़ पधारे हैं। इससे पूर्व सन् 1985 में तेरापंथ के नवमाचार्य तुलसी एवं सन 2004 में दशमाचार्य महाप्रज्ञ के साथ आचार्य महाश्रमण का यहां आगमन हुआ। आचार्य रूप में प्रथम बार चित्तौड़ पधारने पर नगर के जैन समाज के साथ-साथ अन्य वर्ग.समुदाय में भी विशेष उल्लास का माहौल है।
हुआ जगह-जगह स्वागत
आचार्य का चित्तौडग़ढ़ नगर में जगह-जगह स्वागत हुआ। जैन समाज के अलावा अन्य समाज के लोगों ने भी रास्ते में आचार्य के स्वागत करते हुए उनकी अगवानी की। इस दौरान चित्तौडग़ढ़के अलावा भीलवाड़ा, राजसमन्द, उदयपुर से भी श्रावक-श्राविकाएं उनके स्वागत के लिए यहां पर पहुंचे। गणवेश में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं की ओर से जय घोषों से पूरा वातावरण श्रद्धा भक्तिमय बन गया।
दुर्ग की है अपनी विशिष्ठ पहचान- महाश्रमण यहां पहुचने के बाद सेती में मंगल प्रवचन में आचार्य ने कहा व्यक्ति को सदा यह चिंतन करना चाहिए कि मैं ऐसा क्या करूं कि फिर दुर्गति में ना जाना पड़े। हमारा यह जीवन अध्रुव है। कोई भी जीव संसार में हमेशा एक ही अवस्था में नहीं रहता, योनियों में घूमता रहता है। यह संसार दुखों का भी घर कहा गया है। कभी कोई परिस्थिति आ गई, बीमारी हो गई। कुछ न कुछ रूप में संसारी जीवों के दुख होते रहते हैं। इन दु:खों से मुक्ति के लिए व्यक्ति को राग द्वेष मुक्त होना होगा। जो राग.द्वेष से मुक्त हो जाता है वो फिर इन दुखों से भी दूर हो जाता है। जीवन में प्रतिकूलाएं आ सकती है, पर विकट समय में व्यक्ति अपने मन को शांत रखें यह आवश्यक है। समस्या और दुख दोनों अलग.अलग है। प्रवेश के संदर्भ में कहा कि कई वर्षों बाद आज पुन: चित्तौडग़ढ़ में आना हुआ है। राजस्थान मेवाड़ का यह एक अच्छा क्षेत्र है। यहां की जनता में आध्यात्मिकता का विकास होता रहे, जीवन की हर गतिविधि में नैतिकता की भावना बढ़ती रहे।राजस्थान के मेवाड़ संभाग का चित्तौडग़ढ़ शहर जो विश्वप्रसिद्ध किले से अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता है। अपनी शौर्य, पराक्रम गाथाओं से जहां का इतिहास स्वर्णाक्षरों में अंकित है।