प्रकरण के अनुसार नौ साल की बालिका ने अपने संरक्षक दादा के मार्फत अदालत में परिवाद दायर किया था। परिवाद में बताया गया कि ३१ मार्च २०१८ को उसके पिता ने प्रीमियम जमा करवा कर पांच लाख रुपए की बीमा पॉलिसी ली थी। पॉलिसी में नॉमिनी नाबालिग बेटी को बनाया था। इस बीच २ अप्रेल २०२१ को परिवादी बालिका के पिता का निधन हो गया। इस पर पॉलिसी के हित लाभ के भुगतान के लिए आजादनगर स्थित भारतीय जीवन बीमा निगम द्वितीय शाखा में आवेदन किया। लेकिन बीमा कम्पनी ने परिवादी के खाते में देय बीमाधन अदा नहीं किया। परिवादी बालिका और उसकी चार साल की छोटी बहन है। पिता के निधन के बाद उनकी मां किसी अन्य के साथ चली गई। दोनों नाबालिग बालिकाएं अपने दादा के यहां रह रही है। बालिका को आशंका थी कि उनकी मां इस बीमा की राशि को प्राप्त करने का प्रयास कर सकती है। स्थाई लोक अदालत अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और सदस्य सुमन त्रिवेदी व गोवर्धनसिंह कावडि़या ने बीमा कम्पनी और परिवादी पक्ष को सुनने के बाद फैसला सुनाया। अदालत ने बीमा कम्पनी को आदेश दिया कि वह दो माह के भीतर बीमा धनराशि मय ब्याज व अन्य देय हितलाभ के साथ बालिका के बालिग होने तक की अवधि तक एफडी के रूप में कराए। इसके दस्तावेज परिवादी के संरक्षक को सौंपा जाए।