सर्दी बढऩे के साथ बदला खानपान
भीलवाड़ाPublished: Dec 02, 2020 11:04:12 am
तिल के तेल के साथ बाजरे की रोटी व खिचड़ी का चलन
Badla catering with increasing winter in bhilwara
भीलवाड़ा।
अब तीखी सर्दी का दौर शुरु हो गया है। हल्दी, गाजर का हलवा, दाल हलवे की स्वाद नजारे इन दिनों नजर आने लगे हैं। गांवों में सैंधाणे की सुगंध के साथ बाजरे के स्वादिष्ट व्यंजन थाली की शोभा बन रहे हैं। तिल के व्यंजनों की भी बहार है। सर्दी में तिल का तेल बाजरे की रोटी व खिचड़ी के साथ खूब खाया जाता है। मक्के के ढोकले भी हर घर में बनने लगे हैं। सर्दी बढने के साथ ही गांवों में तिल्ली के तेल की मांग बढ़ गई है। जिले में बड़ी संख्या में तिल का तेल निकलता है। शहर में इन दिनों तेल निकलवाने के लिए बड़ी संख्या में धाणिया तक लगने लगी है।
घाणी का तेल अधिक पसंद
शहर के आसपास कई घाणियां लग चुकी है। सीतारामजी की बावड़ी, पुर रोड, गायत्री आश्रम, चित्तौडग़ढ़ रोड समेत अन्य क्षेत्र में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने घाणी लगाकार तिल का तेल निकालने के साथ ही कानिया (तिल का मावा) तक बेचने में लगे है। शहर के लोग इन्हें बड़े चाव से खाते है। सर्दी की सीजन में एक घाणी पर ८ से १० क्विंटल तिल्ली का तेल निकाला जाता है। कई लोगों ने तो परम्परागत घाणी लगा रखी है तो कुछ ने मोटरसाइकिल से चलने वाले घाणी लगा रखी है।
अब नहीं रही परंपरागत घाणी
औद्योगिकीकरण एवं मशीनों के युग में कुटीर उद्योगों पर गहरी चोट हुई है। ग्रामीण अंचलों में परंपरागत उद्योग समाप्त होने के कगार पर है। इसके बावजूद भी परंपरागत घाणी (कोल्हू) के तेल की मांग अब भी गांवों में है। इन दिनों ग्रामीण क्षेत्र के बाजारों में तेल निकालने वाली विद्युत संचालित घाणियां शुरु हो गई है। पहले यहां बैल से घाणी चलाई जाती थी।