इस योजना के तहत शाहपुरा व भीलवाड़ा के लगभग १६० फड़ चित्रकारों को एक स्थान पर लाने का प्रयास किया जाएगा। इसके तहत अब स्पेशल परपज व्हिकल (एसपीवी)बनाने का काम भी शुरू कर दिया गया। भीलवाउ़ा में फड़ चित्रकारी को बढ़ावा देने के लिए ट्रेनिंग सेंटर खोला जाएगा। इसमें देश के बड़े-बड़े कला प्रेमियो को पड़ के बारे में जानकारी मिल सकेगी। डीपीआर को हरी झंडी मिलने के बाद जिला उद्योग केंद्र की ओर से इस पर काम शुरू होगा। काम को सुचारु रूप से चलाने के लिए एक एसपीवी बनाई जाएगी। यह एसपीवी ही काम को सुचारु रूप से चलाएगी। जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक राहुल देव सिंह ने बताया कि भीलवाड़ा जिले में करीब 160 लोग फड़ चित्रकारी का काम करते हैं।
600 साल पुराना इतिहास
फड़ चित्रकारों का मानना है कि भीलवाड़ा व शाहपुरा में बनाए जाने वाले फड़ चित्रों का इतिहास लगभग 600 वर्ष पुराना है। यहां के छीपा चित्रकारों ने फड़े चित्रण के लिए मेवाड़ शैली के तहत एक विशिष्ट चित्रण शैली का विकास किया। जिसे फड़ चित्र शैली के रूप में जाना जाता है। चित्रकार कल्याण जोशी ने बताया कि उनके परिवार की पीढियां इस काम में लगी हुई है। उनके पूर्वज कपड़ा छपाई नहीं बल्कि चित्रित जन्मकुण्डलियाँ बनाते थे और दीवारों पर चित्रकारी करते थे। उनके एक समूह ने कालांतर में फंड़ चित्रांकन आरम्भ किया। आज जितने भी जोशी फड़ चित्रकार परिवार कार्यरत हैं वे सभी एक ही कुटुंब के सदस्य हैं। जोशी चित्रकार भीलवाड़ा से दस किलोमीटर दूर पर स्थित पुर गांव के निवासी थे। उस समय इस गांव को पुरमंडल कहते थे।
इन पर बनाई जाती है फड़
देवानारायण राजस्थान के लोक देवता है। उनके नाम से फड़ बनाई जाती है। इसकी लम्बाई 20 हाथ से 25 हाथ तक होती है। इसमें देवनारायण (बगड़ावत) की कथा का चित्रांकन किया जाता है। इस फड़ की प्रस्तुति दो भोपा, जंतर वाद्य बजाते हुए करते हैं। पाबूजी फड़, गोगाजी की फड़, रामदेव की फड़, माताजी की फड़ शामिल है।
देवानारायण राजस्थान के लोक देवता है। उनके नाम से फड़ बनाई जाती है। इसकी लम्बाई 20 हाथ से 25 हाथ तक होती है। इसमें देवनारायण (बगड़ावत) की कथा का चित्रांकन किया जाता है। इस फड़ की प्रस्तुति दो भोपा, जंतर वाद्य बजाते हुए करते हैं। पाबूजी फड़, गोगाजी की फड़, रामदेव की फड़, माताजी की फड़ शामिल है।