शहर से चार किलोमीटर दूर स्थित हरणी महादेव मंदिर में सेवा पूजा का जिम्मा शर्मा परिवार संभाले हुए है। इसी पीढ़ी से जुड़े ओमप्रकाश शर्मा बताते है कि मंदिर का इतिहास आठ सौ वर्ष से अधिक पुराना है। यहां आटूण ठाकुर शिकार करते हुए पहुंचे थे, विश्राम के दौरान उन्हें स्वपन दिखाई दिया। इसमें यहां शिव परिवार की मूर्तियां होने का उन्हें अहसास हुआ। इस पर क्षेत्र के लोगों ने यहां तलाश की। इस दौरान गुफा में सर्पनुमा चट्टान के नीचे शिव परिवार की प्रतिमा मिली। इसके बाद ये स्थल अटूट आस्था का केन्द्र बन गया। bhilwara k harni k bhole ki jamane m dhak
पन्नालाल, छगनलाल, परसराम दरक के बाद गणेश दरक ने मंदिर को स्वरूप दिया। उनके बाद उनके वंशज इस मंदिर की व्यवस्थाओं को श्रद्धालुओं की मदद से संभाले है। वे बताते है कि हरणी महादेव मंदिर परिसर में कुल सात मंदिर है। ५५ वर्ष पूर्व मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ, इसके बाद से लगातार मंदिर को कलात्मक तरीके से भव्यता प्रदान की जा रही है।
हरणी महादेव मंदिर पर महाशिवरात्रि पर्व पर मेला लगाने का बीड़ा पांच दशक पूर्व दरक परिवार ने उठाया था। उस दौरान शहर की आबादी पांच हजार से कम थी और व्यापारी यहां आने से कतराते थे। एेसे में दरक परिवार उन्हें यहां आने के लिए राशि देता था। इसके बाद यहां शुरू हुए मेले की जिले में पहचान बन गई। नगर पालिका के बाद भीलवाड़ा नगर परिषद ने मेले के आयोजन की कमान संभाल ली। इस मेले में अब जिले के अलावा अन्य राज्यों से भी लोग अपने उत्पाद लेकर पहुंचते है। एेसे में मेले का दायरा भी अब दो किलोमीटर क्षेत्र में फैल गया है। यहां दो सौ से अधिक स्टालें लगती है।
मेला प्रभारी अधिशासी अभियंता अखराम बडोदिया बताते है कि तीन दिवसीय मेले का शुभारम्भ २१ फरवरी को सुबह हुआ। पहले दिन रात्रि को सांस्कृति संध्या होगी। इसी प्रकार शनिवार कवि सम्मेलन होगा। मेले के अंतिम दिन रविवार रात लोक संस्कृति की प्रस्तुति होगी। मेले मे २०० स्टालें लगी है। मेले की सुरक्षा व्यवस्था पुलिस प्रशासन संभाले है। यहां अस्थाई पुलिस चौकी स्थापित की गई है। इसी प्रकार सीसीटीवी कैमरे लगे है।
यहां द्वादश ज्योतिलिंग मंदिर,रामदेव मंदिर, हनुमानमंदिर व श्रीदाता पावन धाम की भी अपनी पहचान है। इसी प्रकार पिकनिक एवं प्रसादी बनाने के लिए यहां कई धर्मशालाएं है। यहां की पहाड़ी से लोग शहर का खूबसूरत नजारा भी देखते है। वही घर में नए वाहन खरीद कर लाने पर यहां लोग पूजन के लिए पहुंचते है। नव वर वधू भी यहां परिजनों के साथ भोले की पूजा करने आते है। इसी प्रकार संगठनात्मक बैठकें, आयोजन भी यहां होते है। नगर परिषद ने क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए यहां चामुंडा माता मंदिर तक रोपवे की योजना भी बना रखी है।
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