१९ वी सदी में कोयले के अंगारों के बीच पहली ट्रेन के स्वागत का साक्षी बने भीलवाड़ा रेलवे स्टेशन को अब २१ वी सर्दी में विद्युत ट्रेन की सौगात मिली है। १२५ साल पुराने भीलवाड़ा के रेलवे इतिहास ने रेल मार्ग पर विकास के कई आयाम स्थापित होते देखा है। भीलवाड़ा स्टेशन क्षेत्र 19वीं सदी का छोटा सा गांव के रूप में जाना जाता था, जहां एक मजरा, एक ढाणी था, लेकिन विकास की करवट ने 21वीं सदी में भीलवाड़ा की तस्वीर ही बदल दी है। यहां मीटर गेज के स्टीम इंजनों की छुक छुक के बाद ब्रॉडगेज इंजनों की लम्बी सीटी के बाद अब इलेक्ट्रिक ट्रेन की भी सीटी गूंजी है।
भारतीय रेलवे ने वर्ष २०२० में हरित ऊर्जा क्रांति का नारा बुलंद करते हुए वर्ष २०३० तक देश में सौर ऊर्जा से संचालित ट्रेनों का बीड़ा उठाया था, इसी के तहत भोपाल रेल मण्डल में रेलवे ने वर्ष २०२० के अंत में सौर ऊर्जा से इंजन संचालित करने का विकल्प भी तलाश कर लिया है और देश के सभी रेलवे मण्डलों ने इस पर प्रारंभिक रूप से काम शुरू कर दिया है। इसके लिए रेलवे रेल ट्रेक के आसपास की की जमीनों को पूर्णत कब्जे में लेते हुए यहां सोलर पैनल स्थापित करेगा। यह सौलर पैनल इस तरह से स्थापित होंगे ताकि यह सुरक्षा दीवार के रूप में भी काम कर सके। रेलवे के इलेक्ट्रिक इंजन के लिए स्थापित किए गए ट्रेक्शन प्वांइट में अभी २५ हजार वॉल्टेज का करंट प्रवाहित हो रहा है, आने वाले दिनों में यह करंट सौर ऊर्जा के जरिए उत्पादित होगा।
इलेक्ट्रिक इंजन भी बदलेगा कहानी मेल इलेक्टिक इंजन का संचालन भी भीलवाड़ा के लिए विकास में मिल का पत्थर साबित होगा। ये इलेक्ट्रिक इंजन इतनी उच्च क्षमता के है कि ढलान में होने पर खुद बिजली उत्पादित करेंगे। अजमेर-उदयपुर रेल मार्ग के विद्युतिकरण के लिए रेलवे ने ३२०.२८ करोड़ का बजट पारित किया था, जो कि कलांतर में बढता गया। रेल मार्ग २९४.५०-३८१.४० (सिंगल ) तक स्थित है। जुलाई २०१६ में अजमेर के आदर्शनगर से विद्युतिकरण कार्य शुरू हुआ। ०६ जनवरी २०१७ को उदयपुर-अजमेर रेल खंड पर विद्युतिकरण कार्य को लेकर हाई अलर्ट किया गया। १० जनवरी २०१७ को रेल मार्ग के विद्युत लाइनों में २२०० वॉल्टेज का करंट प्रवाहित किया गया। २७ मार्च २०१८ को मांडल-नसीराबाद के बीच पहला इंजन दौड़ा। इसके बाद कई सीआरएस और हुए, लेकिन कोरोना से कार्य आठ माह तक अटका रहा। गत १८ दिसम्बर २०२१ को अंतिम रूप से सीआरएस होने के बाद मालगाड़ी दौड़ी। १६ जनवरी २१ को चेतक एक्स प्रेस पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन दौड़ी।
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गेस्ट राइटर….. कोयले से नहीं अब बिजली इंजन से होगा सफर पूर्व रेलवे कोलकोता के प्रधान मुख्य विद्युत अभियंता सी.एस. जीनगर बताते है कि १४० वर्ष के दौरान भीलवाड़ा रेलवे स्टेशन ने विकास के कई सोपान तय किए है, भांप के इंजन, कोयले की तपन व डीजल से संचालित ट्रेनों का सपना यहां साकार हुआ है। निश्चित ही वस्त्रनगरी के लिए रविवार का दिन एतिहासिक रहा। मेल इलेक्ट्रिक इंजन की विशेषता यह है कि यह ना तो धुआं छोड़ता है और ना ही आवाज करता है। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में यह बड़ा कदम है। भीलवाड़ा निवासी हूं, लेकिन मुझे भी देश के विभिन्न हिस्सों में नौकरी करने का मौका है, कोयले के इंजन की ट्रेनों से ही भीलवाड़ा का सफर होता था, यह सफर अब इलेक्ट्रिक ट्रेनों में होने से अब कही अधिक अच्छा लगेगा। हरित ऊर्जा क्रांति का आगाज होने से अब एमपी के बीना के निकट देश का सबसे बड़ा सौलर प्लांट स्थापित हो रहा है। इसी प्रकार देश में रेलवे ट्रेक के आसपास की खाली जगह में सौलर ऊर्जा संचारित की जाएगी। भीलवाड़ा भी केन्द्र बिन्दू रहेगा