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भीलवाड़ा के इस प्लांट में बन रही बिजली, अब निजी हाथों में सौंपने की तैयारी

locationभीलवाड़ाPublished: Jan 05, 2020 12:49:06 pm

Submitted by:

jasraj ojha

patrika.com/rajsthan news

भीलवाड़ा के इस प्लांट में बन रही बिजली, अब निजी हाथों में सौंपने की तैयारी

भीलवाड़ा के इस प्लांट में बन रही बिजली, अब निजी हाथों में सौंपने की तैयारी


भीलवाड़ा. बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र आरजिया में लगे बायो गैस, बायो-सीएनजी प्लांट को अब पीपीपी ( पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशीप) पर देने की तैयारी है। हालांकि यह प्लांट अभी चल रहा है लेकिन जितना वेस्ट इसे चाहिए उतना आसानी से उपलब्ध नहीं हो रहा है। इस प्लांट में 3000 किग्रा जैव अपघटनीय कचरे से 50 किग्रा बायो सी.एन.जी. या 80 यूनिट बिजली का निर्माण करना था। साथ ही इस कचरे से प्रतिदिन लगभग 800 किग्रा बायो खाद बननी थी। शहर में हो रहे प्रदूषण रोकने तथा कचरा निस्तारण की समस्या का प्रमुख समाधान था लेकिन जनता में जागरुकता की कमी से इसे पूरा सहयोग नहीं मिल रहा है। इस प्लांट का उद्घाटन १७ मार्च २०१८ को भाजपा नेता ओम माथुर ने किया था। अब यह प्लांट चल रहा है लेकिन इसमें फिलहाल एक दिन में सात सौ किलो ही खाद तैयार हो रही है। इसे पांच रुपए किलो में मार्केट में बेचा जा रहा है। अभी इसे और कचरे की जरुरत है।
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सीएनजी वाहन नहीं तो बना रहे बिजली
बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र के मुख्य वैज्ञानिक प्रोफेसर एके कोठारी ने बताया कि अभी भीलवाड़ा में सीएनजी वाहन नहीं है। एेसे में इस बायो गैस से बिजली बनाई जा रही है। इसी बिजली से यह प्लांट संचालित किया जा रहा है। इस बिजली से यहां कृषि प्रयोग भी किए जा रहे हैं।
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४५ रुपए लीटर में मिलनी थी सीएनजी
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत यह बायागैस, बायो सीएनजी प्लांट बना है। इसमें फल, सब्जी, कृषि अवशिष्ट पदार्थों से जैविक खाद, सीएनजी गैस व बिजली तक बनाई जा सकती है। इस प्लांट से तैयार सीएनजी से वाहन, रसोई गैस चुल्हा आदि उपकरण चलाए जा सकते हैं। इसमें प्रतिदिन तीन टन कचरें की जरुरत है। लेकिन प्लांट को जिस तरह फल-सब्जी आदि का प्लास्टिक मुक्त कचरा चाहिए जो नहीं मिल रहा है। यहां ४५ रुपए लीटर सीएनजी मिलनी थी, लेकिन वाहन ही नहीं है।
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प्रयास किए लेकिन नहीं हुए सफल
बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र के अधिकारियों ने इस प्लांट को अच्छे तरीके से चलाने के लिए घरों के कीचन से जो वेस्ट निकलता है इसे एकत्रित करने की योजना बनाई। इसके लिए पार्षदों के साथ बैठक भी की लेकिन पूरा सहयोग नहीं मिला। अभी कृषि उपज मंडी से फल-सब्जी, भीलवाड़ा डेयरी से तथा कई होटलों से कीचन का कचरा मंगवाकर इसकी खाद बनाई जा रही है।
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अब एेसा हो तो चल सकता है प्लांट
शहर की किसी एक या दो कॉलोनी को प्रायोगिक तौर पर लिया जा सकता है। इसमें नगर परिषद का जो ऑटो टीपर जाएगा उसके जरिए कीचन का कचरा एकत्रित कर सकते हैं। इस कचरे को आरजिया स्थित प्लांट में भेजने पर इसकी खाद बन सकती है। इसमें बारानी अनुसंधान केंद्र लोगों को समझाने तथा परिवहन खर्च भी देने को तैयार है लेकिन नगर परिषद का पूरा सहयोग नहीं मिल रहा है।
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बायो गैस, बायो-सीएनजी प्लांट अभी चल रहा है। हम खाद तैयार कर मार्केट में बेच रहे हैं। बायो गैस से बिजली बना रहे हैं जो इस प्लांट के लिए ही काम आ रही है। शहर से जितना प्लास्टिक मुक्त व कीचन का कचरा चाहिए उतना नहीं मिल रहा है। अभी जनता में जागरुकता की कमी है। अब इस प्लांट को पीपीपी मोड पर देने की तैयारी भी कर रहे हैं।
प्रोफेसर एके कोठारी, मुख्य वैज्ञानिक, बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र
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