जिला प्रशासन, नगर विकास न्यास, नगर परिषद एवं अन्य विभागों के जिम्मेदार अफसर सुस्ती की चादर ओढ़ सोए हुए हैं। जिन नेताओं को आपने थोक वोटों से जिताया, वो थोथे चने की तरह बज रहे हैं। जिन्हें मंत्री बनाया, उन्हें अपने क्षेत्र के अलावा कुछ नहीं दिख रहा। बाकि बचे छुटभैयाओं की तो अफसर भी नहीं सुन रहे।
विकट हालात के बीच जेहन में कई सवाल हैं। आप और मैं कितने दिन, माह या कितने साल तक तकलीफें झेलेंगे। हमारे यहां कब अच्छी व सुगम कनेक्टिविटी की सड़कें बनेगी। कब सुनियोजित विकास होगा। रेलवे फाटक पर 30 करोड़ से बनने वाला ओवरब्रिज तो दस साल में धरातल पर नहीं उतरा। कोठारी नदी से अतिक्रमण हटाने, फेंसिंग लगाने में खानापूर्ति किसी से छिपी नहीं है। रिवर फ्रंट बनाने की कार्ययोजना हवा-हवाई हो गई। अफसर केवल गाल बजा रहे हैं।
कोठारी नदी पर घटिया निर्माण वाले पुल पर हुए छेद के भ्रष्टाचार पर पर्दा डाला जा रहा है। पुन: निर्माण कब शुरू होगा, किसी के पास कोई जवाब नहीं। नदी पर करीब 100 करोड़ लागत के दो अन्य पुल व जोधड़ास रेलवे ओवरब्रिज का काम चार साल से अटका पड़ा है। सवाल यह है कि अफसर प्रभावी प्रयास क्यों नहीं कर रहे।
ऐसे ही हालात नगर परिषद के हैं। अफसर व बोर्ड के नुमाइंदे भी केवल अपना समय काट रहे हैं। गत बरसात के मौसम में सड़कों के कितने हालात बिगड़े थे। राजस्थान पत्रिका ने सड़कों के हालात दिखाए तो अफसरों की नींद उड़ी। तब जिला कलक्टर से लेकर नगर परिषद व न्यास के अफसरों ने दावा किया था कि अगली बरसात से पहले शहर की सभी सड़कें नई बना दी जाएगी। आप खुद ही देख लें कि आपको व मुझे कितनी राहत मिली। कुछ माह बाद फिर बरसात का मौसम आएगा और हालात जस के तस रहेंगे।
सवाल यह है कि जनता के दर्द को देखने के लिए अफसरों की कोई दृष्टि क्यों नहीं है। क्यों लोगों को धरना-प्रदर्शन व ज्ञापन के लिए मजबूर होना पड़़ रहा है। चुनावी साल में जनता के उबाल आने का इंतजार क्यों किया जा रहा है।
खैर, निवेदन है कि आप लोग मेरी आवाज बनें। पत्रिका आपके साथ खड़ा है। आप जागेंगे तो अफसरों को सुनवाई के लिए मजबूर होना पड़ेगा। शासन के जिम्मेदारों से भी आग्रह है कि वो सुस्ती छोड़ें। वो मुझे अपना घर और आपको परिवार समझकर परेशानियां दूर करने में पूरी ताकत झोंक दें।
-आपका-अपना भीलवाड़ा