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बरसात की कामना से गांव बाहर रसोई, इन्द्रदेव की पूजा-अर्चना की

भीलवाड़ा. गांवों में रविवार को खेतों पर भोजन तैयार करने के लिए बर्तन ले जाते बच्चे- युवा। कण्डों से भरी बोरी को साइकिल पर लाद कर जाते युवा, खेतों में भोजन तैयार करते हुए गीत गाती महिलाएं, आकाश की ओर उठता धुआं, खेतों का रास्ता पूछते अतिथि। लहरिए से सजी चहकती युवतियां, मोबाइल पर बतियाते युवा। गांव में सन्नाटा....यह दृश्य था रविवार को जिले के गांव-गांव का। जहां बारिश की कामना से गांव बाहर रसोई का।

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Kitchen out of the village wished to rain in bhilwara

Kitchen out of the village wished to rain in bhilwara

बरसात की कामना से गांव बाहर रसोई, इन्द्रदेव की पूजा-अर्चना की

भीलवाड़ा. गांवों में रविवार को खेतों पर भोजन तैयार करने के लिए बर्तन ले जाते बच्चे- युवा। कण्डों से भरी बोरी को साइकिल पर लाद कर जाते युवा, खेतों में भोजन तैयार करते हुए गीत गाती महिलाएं, आकाश की ओर उठता धुआं, खेतों का रास्ता पूछते अतिथि। लहरिए से सजी चहकती युवतियां, मोबाइल पर बतियाते युवा। गांव में सन्नाटा....यह दृश्य था रविवार को जिले के गांव-गांव का। जहां बारिश की कामना से गांव बाहर रसोई का। इसमें बहन-बेटी सहित मित्र- रिश्तेदारों व सगे-सम्बन्धीयों के आने-जाने से मेला -सा माहौल देर शाम तक रहा।

जिले में रविवार को गांव-गांव में खेत बाहर रसोई का आयोजन किया गया था। रसोई के रूप में दाल-बाटी व चूरमा बनाया तथा खेत में बिराजित देवी- देवता तथा इन्द्रदेव को धूप लगाकर भोग चढ़ाया। इसके बादि सभी ने भोजन प्रसाद ग्रहण किया। आयोजन मेंं बहन - बेटी को भी आने का न्यौता दिया।

गांव बाहर रसोई का अर्थ है गांव के बाहर भोजन बन कर इन्द्रदेव की पूजा-अर्चना व भोग लगाना है। भारतीय कृषि बरसात पर निर्भर होने से भगवान इन्द्रदेव की गांव-गांव में पूजा-अर्चना व प्रार्थना करने की परम्परा हजारों वर्षों से चली आ रही है। बारिश अच्छी हो ताकि खेतों में अन्न तथा पीने को पानी हो सके। इसके लिए लोग इन्द्रदेव की पूजा-अर्चना व मनोकामना करते है। गांव के लोगों का विश्वास है कि गांव बाहर रसोई की रस्म करने के बाद वर्षा के देव भगवान इन्द्र देव प्रसन्न होकर बरसात करते हैं। ग्रामीण अंचल में आस्था के चलते बारिश में देर होने पर भी ग्रामीण इन्द्रदेव को प्रसन्न करने के लिए गांव बाहर रसोई करते हैं।

यह कार्यक्रम प्रत्येक गांव में सामूहिक रूप से किया जाता है। इसके लिए गांव में मुनादी करावाई जाती है। धार्मिक कारणों से अधिकांशत: रविवार का दिन ही तय किया जाता है। गांव बाहर रसोई का आयोजन गांव का प्रत्येक समाज व वर्ग करता है। खेत पर ईंटों का अस्थाई चूल्हा बनाकर उस पर दाल तथा कण्डों में बाटी तथा कूट कर चूरमा तैयार किया जाता है।

खेत पर देवता का स्थान सहित इष्ट देव तथा विशेष रूप बरसात के देव इन्द्रदेव की पूजा-अर्चना करते हैं। गांव बाहर रसोई में लोग अपनी बहन-बेटी को न्यौता देते हैं। साथ ही, मित्र-रिश्तेदारों को भी आमंत्रित करना नहीं भूलते हैं।

सवाईपुर, सालरिया, ढेलाणा, कालीरडिय़ा, गोविन्द सिंहजी का सहित कई गांवों में रविवार को बारिश की कामना से गांव बाहर भोजन का आयोजन किया गया। लोगों ने इन्द्रदेव सहित सभी देवी-देवताओं को दाल-बाटी का भोग लगाया। बरसात की कामना की।

पारोली. कस्बे में सामूहिक रूप से गांव बाहर भोज हुआ। सुबह पूजा-अर्चना कर अच्छी बारिश की कामना की। उसके बाद नाते-रिश्तेदार दाल-बाटी की रसोई में शामिल हुए।

सिंगोली चारभुजा. बारिश की कामना लिए खेड़ाखूंट माताजी का पूजन किया गया। पण्उित कमलेश कुमार शर्मा ने मंत्रोच्चारण के साथ पटेल रामसुख जाट ने खेड़ाखूंट माताजी, भैरुजी, सगसजी स्थानकों पर बारिश की कामना से हवन करवाया।


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