लोकगीतों से सामाजिक परिवेश में रचा -बसा लहरिया महिलाओं के लिए सावन का अनमोल सौगात है।
सावन माह में नवविवाहिताओं के साथ ही सगाई के रिश्तों में बंधी कन्याओं के यहां ससुराल से लहरिया लाने – ले जाने की भी तैयारियां शुरू हो चुकी है। भांति-भांति के रंगों से लहरिया की साडिय़ों व कपड़ों से दुकाने सज गई है।
भीलवाड़ा व आसपास के क्षेत्रों में बाजारों में खरीदार लहरिया खरीदने उमडऩे लगे हैं। इनमें महिलाओं की संख्या अधिक है। पुराने समय की ओढनी ने लहरिया साड़ी का रूप ले लिया है। फैशन के अनुसार महिलाओं को अब भी मोठड़ा लहरिया सर्वाधिक लुभा रहा है।
शहर के साड़ी विक्रेता ननंदकिशोर गोयल ने बताया कि सावन पखवाड़े पहले से ही लहरिए की बिक्री शुरू हो गई। एक माह पहले ही जयपुर व सूरत से लहिरया मंगवाते है। नाजमीन, प्योर लहरिया, मोठड़ा व पंचरंगी लहरिया ज्यादा लोकप्रिय है। इनमें मोठड़ा लहरिया हर वर्ग की महिलाओं की खास पसंद है।
नव वधुओं को भी मोठड़ा लहरिया ज्यादा भाता है। नाजमीन लहरिया प्रिंटेड़ है जो शिफॉन कपड़े पर हाथ से बनाया जाता है। सामान्यत: लहरिया 300 से 1300 रुपए तक बिकता है। सावन की तीज के लिहाज से गोटा पत्ती मोठड़ा लहरिया की मांग अधिक है। गत वर्ष से इस बार लहरिया की दरों में 5 से 10 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। इसी तरह लहरिया के साथ लाख की चूडिय़ां व कड़े भी बिकने लगे हैं। इनमें ठण्डी लाख के लहरिया कड़े, प्योर लाख कड़े व प्रिंटेड लाख के कड़े ज्यादा प्रचलन में है।