ये देखो…पकड़ में आ गई भीलवाड़ा के शिक्षकों की यह बड़ी चालाकी
भीलवाड़ाPublished: Jun 04, 2019 05:29:01 pm
अब माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की इन पर गिरेगी गाज
भीलवाड़ा. राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से सम्बद्ध सरकारी स्कूलों के शिक्षकों ने अपने शैक्षणिक कामकाज पर पर्दा डालने के लिए खूब दरियादिली दिखाई। 10वीं कक्षा में अद्र्धवार्षिक परीक्षा के नाम पर बच्चों को जमकर नंबर लुटाए ताकि बोर्ड परिणाम अच्छा रहे। हालांकि वार्षिक परीक्षा में इन विद्यार्थियों की पोल खुल गई। राजस्थान पत्रिका ने जब परिणाम की समीक्षा तो स्कूलों की गड़बड़ पकड़ में आ गई। १०वीं कक्षा में बच्चे फेल होने पर पत्रिका ने कमजोर परिणाम रहे स्कूलों का रिपोर्ट कार्ड देखा। चौंकाने वाली हकीकत सामने आई कि कई बच्चों को स्कूलों ने टॉपर मान सेशनल में 20 में से पूरे 20 अंक दिए। इसके पीछे आधार दिया कि ये बच्चे पढऩे में आगे हैं। इन बच्चों ने जब बोर्ड की परीक्षा दी और थ्योरी का परिणाम आया तो पोल खुल गई। कुछ स्कूलों में अधिकांश बच्चों को 80 में से एक, दो या 0 अंक मिले हैं। इससे पता चलता है कि स्कूलों में केवल अच्छा बताने के लिए नंबर लुटाने का खेल हुआ है।
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केस ०१
राउमावि रूपाहेली का परिणाम ८.७० प्रतिशत रहा। एक विद्यार्थी ने अंग्रेजी में सेशनल में २० में से १९ अंक हासिल किए। बोर्ड परीक्षा में थ्योरी में ८० में से मात्र १ अंक मिला हैं। सेशनल में बाकी विषय में १९ अंक दिए है जबकि थ्योरी में भी इतने ही नंबर आए है। मतलब खूब नंबर दिए लेकिन पास नहीं हो पाया।
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केस०२
राउमावि खांखला का परिणाम १६.६७ प्रतिशत रहा। एक परीक्षार्थी को गणित में स्कूल से २० में से १९ अंक भेजे गए। बोर्ड में थ्योरी में ८० में से शून्य अंक मिला। मतलब थ्योरी में एक भी अंक नहीं ला सकने वाले विद्यार्थी को स्कूल ने २० में से १९ अंक दिए। इसके बावजूद यह पूरक आया है। एेसा सभी स्कूलों में हुआ है।
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पत्रिका व्यू: कमजोर कर रहे हैं नींव
सरकारी स्कूलों में जो बच्चे पढ़ रहे हैं उन्हें सच दिखाने में भी संस्था प्रधान हिचक रहे हैं। यदि अद्र्धवार्षिक परीक्षा में ही तैयारी का सच दिखा दे तो वार्षिक परीक्षा में अच्छी तैयारी करेंगे लेकिन हो यह रहा है कि वे अपना परिणाम सुधारने के चक्कर में अद्र्धवार्षिक परीक्षाओं में जमकर नंबर बांट रहे हैं। जब बोर्ड से कॉपी जांचने के बाद जो नंबर आ रहे हैं, इससे परीक्षार्थी भी तनाव में आ रहे हैं। इसकी वजह है कि वे सोच रहे हैं कि जब स्कूल से इतने अच्छे अंक मिले हैं तो बोर्ड से परिणाम में एेसा क्या हो गया। मतलब अपनी साख के चक्कर में परिणाम में भी खेल हो रहा है।