प्रायश्चित चारित्र को निर्मल रखने की दवा -आचार्य महाश्रमण
भीलवाड़ा। कोरोना महामारी के बाद से ही सामाजिक दूरी बनाए रखने को आचार्य महाश्रमणजी की प्रेरणा से जन-जन प्रभावित दिखाई दे रहा है। प्रतिदिन हजारों लोग वर्चुअल जुड़कर आचार्य की मंगलवाणी से लाभान्वित हो रहे हैं। रविवार को चतुर्दशी तिथि को हाजरी का क्रम होता है, इसलिए यह उपस्थिति श्रद्धालुओं को हर्षित कर रही थी। साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने अपने लक्ष्य के प्रति जागरूक रहने और आचार्य के निर्देशन में आगे बढऩे को उत्प्रेरित किया। आचार्य ने कहा कि प्रायश्चित चारित्र को निर्मल रखने की दवा है। ठाण में दस प्रकार के बंध बताए गए हैं। बंध का भी महत्व है। इन्द्रियां विषयों को ग्रहण करती हैं तो वह बंध होता है। इन्द्रियां ज्ञान का माध्यम होती हैं। देखने, सुनने, स्पर्श करने, गंध से कितना-कितना ज्ञान प्राप्त हो सकता है। आदमी को अपने जीवन में ज्ञान का निरंतर विकास करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य ने हाजरी के क्रम में उपस्थित साध्वियों को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु को अपने आचार के प्रति सतत जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। राजसमंद से भाजपा सांसद दीयाकुमारी ने भी आचार्य के दर्शन किए।
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