थानाप्रभारी ने बताया कि दिल्ली पुलिस को वर्ष-2009 में मीना लावारिस घूमते मिली थी। पुलिस ने मीना को दिल्ली में किलकारी रेम्बो एनजीओ के हवाले किया। वही मीना का लालन-पालन कर रही थी। एनजीओ को तब यहीं पता था कि बालिका का नाम मीना है और करेड़ा की रहने वाली है। उसके पिता का नाम बक्षु है। एनजीओ ने परिजनों की तब तलाश भी की, लेकिन पता नहीं चला।
वर्ष-2016 में सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया। उन्होंने लावारिस मिली बालिकाओं की एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए। जिस एनजीओ में मीना रह रही थी, उसमें १०५ बालिकाएं साथ रहकर पढ़ाई कर रही है। एफआईआर दर्ज होने के बाद दिल्ली पुलिस ने दुबारा से मीना के परिजनों की तलाश की।
इस बीच दिल्ली पुलिस ने बालिका के बारे में करेड़ा पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने पुराना रिकॉर्ड को खंगाला तो मीना की गुमशुदगी निकली। उसके पिता को बुलाया। उनके साथ कुछ ओर लोगों को दिल्ली भेजा। वहां पिता से मीना को मिलाया गया। पिता ने बेटी को पहचान लिया। कागजी औपचारिकता पूरी कर मीना को करेड़ा थाने लाया गया।
हर आहट में बेटी का इंतजार