भीलवाड़ा

gst on cotton cloth सूती कपड़ा महंगा होने से लाखों परिवारों पर पड़ेगा असर

आशंका: लोग सूती के बजाय सिन्थेटिक्स कपड़े पर न आ जाएं

भीलवाड़ाNov 30, 2021 / 08:51 pm

Suresh Jain

gst on cotton cloth सूती कपड़ा महंगा होने से लाखों परिवारों पर पड़ेगा असर

भीलवाड़ा।
gst on cotton cloth देश में लगातार बढ़ती महंगाई को लेकर जहां आम जनता पहले ही परेशान है। ऐसे में केंद्र सरकार ने आम लोगों की मुश्किलों को दूर करने की बजाय उन पर आर्थिक बोझ डालने का काम किया है। केंद्र सरकार ने सूती कपड़ा और महंगा कर दिया है। यानी केन्द्र सरकार ने कॉटन यार्न पर ५ फीसदी तो उससे बनने वाले सूती कपड़े पर जीएसदी दर 5 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया है। इस टैक्स स्लैब में नया बदलाव 1 जनवरी 2022 से लागू हो जाएगा। इसका असर आम लोगों पर पड़ेगा। विशेषकर बिहार, उड़ीसा, आन्ध्रप्रदेश, बंगाल तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में महिलाएं जहां सूती साड़ी पहनती हंै। जबकि साउथ में लोग सूती धोती पहनते हैं। यानी देश के ४० से ५० प्रतिशत लोग आज भी सस्ता सूती कपड़ा पहनते हंै। कपड़े की कीमत एक जनवरी से ७ फीसदी से बढ़ जाएगी। इसे लेकर भीलवाड़ा, पाली, बालोतरा, जोधपुर, सूरत, अहमदाबाद और लुधियाना के व्यापारी कड़ा विरोध कर रहे हैं।
देश में २५ लाख पावरलूम संचालित
देश में २५ लाख पावरलूम हैं। उनमें से २० लाख पावरलूमों पर केवल सूती कपड़ा बनता है। इनमें मेरठ, आगरा, इंचलकरंजी, मालेगांव, भिवंड़ी, मऊरानीपुर आदि २० से अधिक टेक्सटाइल क्लस्टर हैं जहां लाखों परिवार ४ से ६ लूम पर सूती कपड़ा जॉब पर बनाते हैं। सूती कपड़े की कीमत बढऩे के साथ ही उत्पादन पर असर पड़ेगा। लोग सिन्थेटिक्स कपड़े पर आ जाएंगे। ऐसे में सूती कपड़े का उत्पादन कम होकर कहीं बनना ही बन्द न हो जाए।
इसलिए नहीं बढ़े कॉटन यार्न के दाम
व्यापारियों का कहना है कि कोयंबटूर लॉबी सरकार पर हावी होने के कारण कॉटन यार्न पर जीएसटी दर नहीं बढ़ाई गई है। इसे लेकर कॉटन यार्न व्यापारियों को माथे पर किसी तरह की चिन्ता नहीं है। लेकिन सूती कपड़ा बनाने वाले व्यापारी अब परेशान नजर आ रहे हैं।
राजस्थान में सूती कपड़े का उत्पादन
– भीलवाड़ा में तेजी से डेनिम कपड़े का उत्पादन बढ़ रहा है। उत्पादन का ६० से ७० प्रतिशत डेनिम निर्यात हो रहा है। एक जनवरी से कपड़ा महंगा होना से निर्यात पर असर पड़ेगा।
– किशनगढ़ में सूती बेड शीट का उत्पादन होता है। ६० से ७० प्रतिशत बेड शीट यूरोपियन देशों में निर्यात होता है। बगरू व सांगानेर (जयपुर) में सूती कपड़े की छपाई व रंगाई का काम होता है।
– पाली, बालोतरा व जोधपुर में महिलाओं के लिए सूती कपड़े का उत्पादन होता है। कपड़ा महंगा होने से इस पर भी असर पडेगा। मांग में कमी आएगी।
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प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाएंगे
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इण्डिया व आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत भीलवाड़ा विश्व की अत्याधुनिक तकनीकी का उपयोग कर रहा है। जीएसटी दर में बढ़ोतरी के कारण बंगलादेश, वियतनाम, इण्डोनेशिया व चीन जैसे प्रतिस्पर्धी देशों से पिछड़ जाएंगे। क्योंकि यह देश भारत में कम लागत पर कपड़ा व रेडिमेड वस्त्र भेज रहे हैं।
आयात में छूट तो भारत में जीएसटी
एक तरफ सरकार बंगलादेश को ड्युटी फ्री रेडिमेड वस्त्रों के आयात को छूट दे रही है। वही दूसरी तरफ भीलवाड़ा जैसे बढ़ते टेक्सटाइल उत्पादक क्षेत्र को जीएसटी कांउसिंल के फैसले के कारण परेशानी बढ़ेगी। इससे व्यवसाय एवं उद्योग संकट में आ जाएगा।
रूई से लेकर कपड़े तक ५ फीसदी जीएसटी हो
रूई से लेकर कपड़ा बनाने तक की पूरी चेन को 5 फीसदी जीएसटी के दायरे में रखकर उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। इससे देश में इससे वस्त्र उत्पादन बढ़ेगा, रोजगार के नए अवसर बढ़ेंगे। कपड़े पर व यार्न पर एक समान जीएसटी दर ५ प्रतिशत करने के लिए फेडरेशन ने वित्त मंत्री निर्मला सितारमण को पत्र लिखा है।
-अतुल शर्मा, कार्यकारी अध्यक्ष, भीलवाड़ा टेक्सटाइल ट्रेड फेडरेशन
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