स्वार्थ से जुड़ा संसार का ममत्व-आचार्य महाश्रमण
भीलवाड़ाPublished: Oct 19, 2021 09:13:57 pm
अश्विन शुक्ला चतुर्दशी पर हाजिरी मर्यादा पत्र का वाचन किया
स्वार्थ से जुड़ा संसार का ममत्व-आचार्य महाश्रमण
भीलवाड़ा।
आचार्य महाश्रमण के सानिध्य में मंगलवार को अश्विन शुक्ला चतुर्दशी पर हाजिरी मर्यादा पत्र का वाचन किया गया। मर्यादाओं की स्मारण कराते आचार्य ने तेरापंथ के प्रथम आचार्य भिक्षु एवं प्रज्ञापुरुष आचार्य जयाचार्य के गुणों को व्याख्यायित किया। मुनि ऋषि कुमार व मुनि रत्नेश कुमार ने लेखपत्र का समुच्चारण किया।
आचार्य महाश्रमण ने धर्म देशना देते कहा कि व्यक्ति जिस कुल में पैदा होता है, जिसके साथ रहता है, उसके साथ ममत्व जुड़ जाता है। ममत्व के कारण वह दुख मुक्त नहीं हो सकता। संसार में स्वार्थ आधारित ममत्व देखा जाता है। ये किसी रूप में हिंसा का कारण भी बन सकता है। रिश्ते, संबंध स्वार्थ सिद्धि तक साथ रहते हैं, जैसे ही स्वार्थ पूरा होता प्रेम, स्नेह विच्छिन्न हो जाता है। ये मेरापन भ्रम है जब व्यक्ति मरता है, वह अकेले ही जाता है। उसके साथ कोई नहीं जाता है। एक उम्र आने के बाद व्यक्ति को परिग्रह मुक्त एवं अनासक्त भाव रखते हुए आत्म कल्याण एवं कर्म मुक्ति की दिशा में आगे बढऩा चाहिए।
आचार्य ने कहा कि तेरापंथ धर्म के चतुर्थ आचार्य जयाचार्य का जन्म दिवस है। वे महान साहित्यकार, संत पुरुष थे जिनका मारवाड़ के रॉयट में जन्म हुआ। जयाचार्य आचार्य भिक्षु के आगमिक, तात्विक, ज्ञानात्मक उतराधिकारी थे। भिक्षु स्वामी के भाष्यकार जयाचार्य ने अपनी प्रतिभा एवं प्रज्ञा से संघ को अनेक अवदान दिए। विशिष्ट ज्ञान, विरल व्यक्तित्व के धनी जयाचार्य ने अनेक आगम ग्रंथों का प्रणयन पद्यात्मक कर दिया। उनकी ज्ञान, मेघा और प्रतिभा अनुत्तर थी। जयाचार्य ने लगभग तीस वर्षों तक संघ की बागडोर संभाली। आचार्य ने साधु-साध्वियों को क्षेत्र की सारसंभाल, प्रवचन शैली आदि का भी पथदर्शन प्रदान किया। विद्या भारती शिक्षण संस्थान के राष्ट्रीय मंत्री अविनाश भटनागर ने विचार जताए।