किसी देवता ने गरीब को अमीर नहीं बनाया
भीलवाड़ाPublished: Mar 06, 2021 09:37:34 pm
देवताओं से अपेक्षा करना व्यर्थ
किसी देवता ने गरीब को अमीर नहीं बनाया
भीलवाड़ा।
अगर तुम अपने जीवन को सुरक्षित व सुखी बनाना चाहते हो तो अपने समय में से कम से कम 5 मिनट उनके बारे में सोचो, जो तुमसे पुण्यहीन है। तुम्हारा मन उनके बारे में विचार करे, जो मनहीन है। इसीलिए मेरी भावना में कहा है। Óसुखी रहे सब जीव जगत के, कोई कभी न घबराएÓ। विषय का विस्तार करते हुए निर्यापक मुनि पुंगव सुधासागर महाराज ने कहा कि इस 14 राजु विशाल लोकाकाश में अनेकानेक प्रकार के जीव है। निगोदिया, नारकी से लेकर देवता तक। लेकिन न तो प्रकृति को सभी पर विश्वास है, न ही ऐसे जीव एक दूसरे पर विश्वास करते है। प्रकृति ने इनको ऐसी क्षमता ही नही दी। मात्र मुनष्य जीवन ही एक ऐसा जीवन है, जहां एक दूसरे की मदद के भाव होते है। इसलिए मनुष्य के लिए कहा गया है कि कोई भी कार्य करो तो अपने से पुण्यहीन के बारे में विचार करो, उनके लिए सोचो, ओर उनकी मदद करो। अपने मन में पांच मीनिट के लिए उन जीवों के लिए विचार करो, जिनके पास कुछ नही है, जो जीवन या मृत्यु को समझते ही नही है। उनकी जिंदगी के बारे में सोचो। एक वृक्ष पानी के पास नही जा सकता, सोचो उसको जल की आवश्यकता कब होती है। उसे जल दो। मात्र पांच मिनट प्रकृति से सभी तत्वों के बारे में सोचोगे तो तुम्हारा यही मन का बीज एक वृक्ष बनकर पूरे जीवन को छाया रुप बनेगा। तुमने वृक्ष की रक्षा की तो उससे इतनी एनर्जी निकलेगी, वह तुम्हें जीवन में ताकत देगी। इसके विपरित अगर तुम प्रकृति का शोषण करोगे तो प्रकृति भी तुम्हारा शोषण करने लगेगी।
महाराज चंवलेश्वर पाश्र्वनाथ तीर्थ क्षेत्र में आयोजित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि नारकी एक दूसरे की वेदना समझते है, लेकिन प्रकृति ने उनको इतनी क्षमता नही दी कि वे एक दूसरे की मदद कर सके। देवताओं के पास अपार वैभव होता है, वे भगवान एवं तीर्थंकर जैसे पुण्यवानों की सेवा तो करते है, लेकिन कोई देवता पुण्यहीनों के प्रति दया नही दिखाता। प्रकृति ने उन्हें ऐसा ही बनाया है। आज तक किसी देवता ने गरीब को अमीर नही बनाया। भूखे को रोटी नही
दी, अंधे को आंख नही दी, इसलिए देवताओं से अपेक्षा करना व्यर्थ है। मनुष्य को प्रकृति ने मन दिया है और इसलिए प्रकृति तुमसे अपेक्षा करती है कि तुम अपने से निर्बल, मनहीन जीवों के बारे में सोचो। इसलिए जैन धर्म का एक मूल मंत्र है कि Óपरस्पर ग्रहो जीवाणामÓ। इससे पूर्व सुबह अभिषेक, शान्तिधारा, पूजा, आहर चर्या, शाम को जिज्ञासा समाधान, आरती व गुरुभक्ति के आयोजन हुए।