जयकारों के बीच पदमप्रभु की प्रतिमा वेदी में की विराजमान
भीलवाड़ाPublished: Nov 12, 2021 07:56:11 pm
श्रीजी की शोभायात्रा के साथ तीन दिवसीय वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव का समापन
जयकारों के बीच पदमप्रभु की प्रतिमा वेदी में की विराजमान
भीलवाड़ा।
बापूनगर स्थित श्री पदमप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर में नवनिर्नित मंदिर की वेदी में मूलनायक पदमप्रभु भगवान को विराजमान किया तो मंदिर प्रांगण जयकारों से गूंज उठा। श्रीजी की शोभायात्रा निकाली गई। इसमें सकल दिगम्बर समाज ने हिस्सा लिया। तीन दिवसीय वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव निर्यापक मुनि विद्यासागर महाराज ससंघ के सानिध्य में संपन्न हुआ।
प्रचार मंत्री प्रकाश पाटनी ने बताया कि स्व. दिलसुखराय, स्व महेंद्र अजमेरा की स्मृति में धीरज अजमेरा ने मुख्य द्वार बनाया जिसका परिवार जनों ने उदघाटन किया। प्रतिष्ठाचार्य प्रदीप भैया के निर्देशन में विधि विधान से कार्य प्रारम्भ हुआ। मुनि विद्यासागर के मंत्रों के साथ मूलनायक पदमप्रभु भगवान को रूपचंद, दिलीप कुमार, लक्ष्मीकांत जैन ने विराजमान किया। तो जय घोष से मंदिर गूंज उठा। पूनम चंद, अतिवीर सेठी ने मुनीसुव्रत नाथ भगवान एवं सुरेश, रेखा बाबरिया ने पाश्र्वनाथ भगवान को विराजमान किया। ओमप्रकाश, अंकुर पाटनी ने शिखर पर ध्वजा चढ़ाई। एलके जैन ने शिखर पर स्वर्ण कलश की स्थापना की। राजेश व मैना पाटनी ने एवं प्रेमचंद, जम्मू कुमार भैंसा ने पांडू शीला को विराजमान किया। कपूरचंद, संजय लुहाडिया अजमेर व राजकुमार, अनिल कुमार झांझरी देवली ने घंटी लगाई। कमलनयन, दिव्या कुमार शाह ने पदमप्रभु भगवान के ऊपर छत्र लगाया। त्रिलोक चंद, कांता देवी गंगवाल व अशोक, विकास पाटोदी ने चांदी की जारी भेंट की। ज्ञानचंद पाटनी व संतोष कुमार बघेरवाल ने चांदी का सिंघासन भेट किया। मार्बल से बना कमलासन सुरेश सिद्धार्थ बावरिया ने विराजमान किया। इस अनुष्ठान में सोधर्मइंद्र प्रेम कुमार अग्रवाल, यज्ञ नायक डूंगरमल कासलीवाल, कुबेर निर्मल काला, ईशान इंद्र विकास पाटोदी, सनत कुमार अंकुर पाटनी, महेंद्र इंद्र ताराचंद अग्रवाल ने मांगलिक क्रियाएं की।
इस अवसर पर मुनि विद्यासागर महाराज ने कहा कि आज वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव पर सभी प्रतिमाएं नए जिनालय में विराजमान हुए। सभी भक्ति, पूजा, अर्चना कर अपनी भगवता को प्राप्त कर शाश्वत सुख को प्राप्त करने का प्रयास करें। धार्मिक अनुष्ठान करे। धार्मिक पाठशाला शुरू करना चाहिए। जिससे बच्चे संस्कारवान बने। मंदिर निर्माण से आगे आने वाली पीढिय़ां जुड़ी रहेगी। धार्मिक शिविर व स्वाध्याय भी करना चाहिए। समापन पर शोभायात्रा निकली गई। बागियों में सभी मुख्य इंद्र-इंद्राणी विराजमान थे। महिलाएं हाथों में जैन ध्वज लिए चल रही थी। बैंड बाजों की स्वर लहरियों में श्रावक-श्राविका नाचते गाते चल रहे थे। महिलाएं व पुरुषों ने जगह-जगह भक्ति नृत्य कर जयघोष कर रहे थे।