सात वर्ष की है सजा का प्रावधान पर्यावरणविद् बाबूलाल जाजू ने बताया कि मोर प्रथम अनुसूची का पक्षी है। इसकी हत्या वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में दंडनीय अपराध है। यह गैर जमानती है। इसकी हत्या पर सात वर्ष तक की सजा व 50 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि यह पुलिस व वन विभाग की लापरवाही से हुआ है। कारण है कि अब तक जो मोरों की हत्याएं हुई है, इसमें एक में भी सजा नहीं हुई है। उन्होंने बताया कि इस मामले में पुलिस थाने में एफआईआर कराई जाएगी।
थानाप्रभारी तुलसीराम प्रजापत के अनुसार गत 14 जनवरी को दोवनी निवासी शंकर गुर्जर ने मामला दर्ज कराया था। परिवादी ने आरोप लगाया कि उसका समधी मण्डोता (कोटड़ी) निवासी लादूलाल गुर्जर झगड़े की राशि देने चार लाख रुपए लेकर पैदल जा रहा था। रास्ते में जीप लेकर आए चांदगढ़ निवासी खाना गुर्जर, देबीलाल गुर्जर समेत कुछ लोग मारपीट कर अपहरण कर ले गए। पुलिस छह दिनों से लादूलाल की तलाश कर रही थी। इस बीच उसके चित्तौडग़ढ़ में बाइपास पर होने की जानकारी सामने आई। इस पर पुलिस दल वहां से उसे लेकर आए। इससे पहले पुलिस ने लादू की तलाश में कई स्थानों पर दबिश दी। थाने पहुंचने के बाद लादू ने अपहरणकर्ताओं द्वारा मारपीट करने से इनकार कर दिया। उसने कहना था कि उसके पास चार लाख रुपए भी नहीं थे। अल्बत्ता अपहरण के बाद आरोपित इधर-उधर घूमाते रहे। बाद में चित्तौडग़ढ़ बाइपास पर छोड़ गए।