अनासक्ति की साधना से आत्म कल्याण-आचार्य महाश्रमण
भीलवाड़ाPublished: Oct 24, 2021 10:22:36 pm
आचार्य ने चिकित्सों को दिया पाथेय
अनासक्ति की साधना से आत्म कल्याण-आचार्य महाश्रमण
भीलवाड़ा।
दुनिया का सौभाग्य है कि हर समय साधु उपस्थित होते हैं। ऋषि, मुनियों की उपस्थिति से धरती पावन रहती है। दुनिया में अनेक ऐसे लोग हो सकते हैं, जिन्होंने त्याग किया है, परन्तु सम्यक् रूप में आत्मा से त्याग नहीं कर पाए हैं। आत्मा में आसक्ति पदार्थ के प्रति आकर्षण रखते हैं। बाहर से त्याग का रूप धारण करते हैं, ऐसा आत्मा के लिए कल्याणकारी नहीं हो सकता। बाहर से भले ही किसी ने त्याग नहीं किया, किन्तु भीतर से पदार्थ के प्रति अनासक्ति हो गई। त्याग आ गया तो वह व्यक्ति त्यागी हो जाता है। कपड़े से भले गृहस्थ हैं और भीतर से त्याग आ गया मो मानना चाहिए कि उस आदमी में साधुत्व आ गया। यह पाथेय आचार्य महाश्रमण ने वर्चुअल प्रवचन के दौरान दिया।
आचार्य ने कहा कि उसमें कई लोग ऐसे भी साधु बने थे जो कपड़े भले ही गृहस्थ अवस्था के पहने थे, किन्तु त्याग और संयम का मार्ग अपना साधु हो गए। आदमी को अपनी आत्मा कल्याण के लिए पदार्थों के प्रति अनासक्ति व त्याग का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। भीतर से पदार्थों की आसक्ति छूटे यह त्याग की मूल कसौटी होती है।
आचार्य ने मेडिकल फैटर्निटी, डॉक्टर्स और रेसिडेंट्स चिकित्सकों को पाथेय प्रदान किया। जिले भर के करीब 2०० चिकित्सक मौजूद रहे। मंगल प्रवचन के बाद चातुर्मास व्यवस्था समिति ने चिकित्सकों का सम्मानित किया। मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल पवन कुमार, एमजीएच अधीक्षक डॉ. अरुण गौड़, आईएमए अध्यक्ष डॉ. तैलाश काबरा, पूर्व अध्यक्ष डॉ. दुष्यंत शर्मा उपस्थित थे।
बच्चों को दिए मेडल
तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के तत्वावधान में आचार्य महाश्रमण के सानिध्य में प्रतिभावान बच्चों को मेडल प्रदान करके सम्मानित किया गया। देश भर से करीब 125 छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। इन सभी को तीन ग्रुपों में स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक देकर सम्मानित किया।